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एनपीए में गिरावट तथा ऋण उठाव में वृद्धि से बैंकिंग प्रणाली में सुधार

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 5 2019 2:18AM | Updated Date: Jul 5 2019 2:18AM
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नई दिल्ली। आर्थिम समीक्षा में कहा गया है कि पिछले वर्ष मौद्रिक नीति में संपूर्ण बदलाव देखने को मिला और गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में कमी तथा ऋण उठाव में वृद्धि होने से देश की  बैंकिंग  प्रणाली के कार्य प्रदर्शन में सुधार हुआ है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक समीक्षा 2018-19 को गुरूवार को संसद में पेश किया। इसमें कहा गया है कि नीतिगत दर पहली बार 50 आधार अंक बढ़ाई गई और बाद में अपेक्षाकृत कमजोर मुद्रास्फीति, मंदी तथा नरम अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक स्थितियों के कारण 75 आधार अंक घटा दी गई। लेकिन तरलता की स्थिति सितंबर 2018 से कठिन बनी हुई है।
 
इसमें  बैंकिंग  प्रणाली के कार्य प्रदर्शन में सुधार होने का उल्लेख करते हुये कहा गया है कि एनपीए अनुपात में कमी आई है और बैंक कर्ज में वृद्धि हुई है। लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय प्रवाह बाधित रहा, क्योंकि पूंजी बाजार से उठाई गई राशि में कमी आई और गैर- बैंकिंग  वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर दबाव बढ़ा। दिवाला और दिवालिएपन के लिए प्रणालीबद्ध तरीके से व्यवस्था बनाई जा रही है। इस व्यवस्था से बैंकों के फंसे हुए कर्ज की वसूली हुई है और कारोबारी माहौल में सुधार हुआ है। समीक्षा में तरलता के विषय में कहा गया है कि 2018-19 के अंतिम दो तिमाहियों तथा 2019-20 की पहली तिमाही में औसत तरलता की स्थिति घाटे में रही। तरलता की कठिनाई ब्याज दरों में भी दिखी। तरलता के मामले में तीन कारणों से स्थिति कठिन हुई। पहला, 2018-19 के अंतिम दो तिमाहियों में बैंक कर्ज वृद्धि में सुधार हुआ, लेकिन बैंक जमाओं में गति धीमी रही। रिजर्व बैंक को विनिमय दर के उतार-चढ़ाव को थामने के लिए 32 अरब डॉलर से अधिक की विदेशी मुद्रा सुरक्षित धन से निकालनी पड़ी।
 
आरबीआई ने विभिन्न साधनों के जरिए तरलता लाकर समस्या का समाधान निकाला। इसमें कहा गया है कि 2018-19 में  बैंकिंग  क्षेत्र विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कार्य प्रदर्शन में सुधार हुआ। मार्च, 2018 और दिसंबर, 2018 के बीच अनुसूचित वाणिज्य बैंकों का सकल एनपीए अनुपात 11.5 प्रतिशत से घटकर 10.1 प्रतिशत हो गया। पिछले कुछ वर्षों में गैर खाद्य बैंक कर्ज (एनएफसी) के विकास की गति धीमी रही, लेकिन 2018-19 में इसमें सुधार आया। 2018-19 में बड़े उद्योगों तथा सेवा क्षेत्र को बैंकों द्वारा कर्ज देने से समग्र एनएफसी में विकास हुआ। लेकिन ऋण वृद्धि की गति पिछले कुछ महीनों में साधारण रही। गैर- बैंकिंग  वित्तीय कंपनियों की गंभीर तरलता स्थिति को देखते हुए सरकार ने तेजी से कार्रवाई की और समस्या के समाधान के लिए तत्काल कदम उठाया।
 
गैर- बैंकिंग  वित्तीय कंपनियों को संसाधनों के प्रवाह की कमी से हाल की तिमाहियों में इस क्षेत्र की ऋण देने की क्षमता पर प्रभाव पड़ा है। समीक्षा में कहा गया है कि दिवाला और दिवालिएपन की समस्या से निपटने के लिए प्रणालीबद्ध तरीके से व्यवस्था की जा रही है। इसके कारण फंसे हुए कर्जों की वसूली हुई है और कारोबारी संस्कृति में सुधार हुआ है। 31 मार्च, 2019 तक कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के अंतर्गत 94 मामलों का समाधान हुआ। इसके परिणाम स्वरूप 1,73,359 करोड़ रुपये के दावों का निपटान किया गया। 28 फरवरी, 2019 तक आईबीसी प्रावधानों के अंतर्गत 2.84 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 6079 मामले स्वीकृति से पहले वापस ले लिए गए। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार पहले के गैर निष्पादक खातों से 50,000 करोड़ रुपये बैंकों को प्राप्त हुए। 
 
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