नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की रिश्वत से व्यक्तिगत पूंजी बनाने के लिए किये गये फर्जी सौदों के बारे में उनकी चुप्पी को भ्रष्टाचार की स्वीकारोक्ति बताते हुए शुक्रवार कहा कि प्रधानमंत्री पद का सपना देखने वाले व्यक्ति को इन सवालों पर चुप्पी साधने का अधिकार नहीं है। भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘राहुल गांधी उन कई विषयों पर बोलते हैं जिनके बारे में उन्हें जानकारी जरा भी नहीं है। वह सभी पर बेबुनियाद अप्रमाणित आरोप लगाते हैं।
वह सिर्फ उस विषय पर नहीं बोलते हैं जिसकी सच्चाई वह खुद जानते हैं जैसा कि उनके बैंक खाते।’’ जेटली ने कहा कि जब यह रिपोर्ट आयी कि उनका व्यक्तिगत पूंजी निर्माण कार्यक्रम या फर्जी सौदे और रातों-रात उड़न छू होने वाले ऑपरेटरों पर आधारित है तो उन्होंने खुद पर और कांग्रेस पार्टी के बड़बोले मीडिया सेल पर भी सेंसरशिप लगा दी। उन्होंने कहा कि जब ईमानदारी से जुड़े ऐसे मुद्दे पर कोई उत्तर नहीं दिया जाए तो देश को अधिकार है कि वह यह मान ले कि इसका कोई उत्तर या स्पष्टीकरण नहीं है तथा इस मामले में चुप्पी किसी फर्जी स्पष्टीकरण से भी ज्यादा छिपा रही है। उन्होंने अगस्ता वेस्टलैंड आरोपपत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि इस मामले में दाखिल आरोपपत्र में साफ तौर से दिखाया गया है कि स्विटजरलैंड के लुगानो में स्विस पुलिस द्वारा गुईदो हशके की मां के घर मारे गए छापे में जो दस्तावेज बरामद हुए उसमें अंग्रेजी की वर्णमाला के कुछ अक्षर हैं।
ये कुछ नेताओं/ शख्सियतों के नाम हैं जो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में दखल रखते हैं। उन्होंने कहा कि जब अगस्ता वेस्टलैंड के चेयरमैन और सीईओ को फरवरी 2013 में इटली में गिरफ्तार किया गया तो केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने प्रारंभिक जांच रिपोर्ट लिखी थी। जब सरकार ने चार दिसंबर 2018 को जेम्स मिशेल और 30 जनवरी 2019 को राजीव सक्सेना को भारत लाने में सफलता मिली तो जांच तेजी से आगे बढ़ी। आरोपपत्र मौखिक साक्ष्य और दस्तावेज पर आधारित है। उन्होंने सवाल किया कि आखिर आरजी, एपी, और एफएएम कौन हैं जिनके बारे में बात हो रही है? जांचकर्ताओं ने संबद्ध व्यक्तियों के बयान का जिक्र किया है।
ये इटली से बरामद दस्तावेज भारत में एकत्र किए गए प्रमाणों से मेल खाते हैं। जेटली ने कहा कि देश के राजनीतिज्ञों में यह गलत धारणा है कि एक डायरी किसी भी तरह से प्रमाण के तौर पर नहीं मानी जा सकती है, जैसा कि जैन हवाला कांड में हुआ। कोई भी डायरी लिखित में स्वीकरोक्ति है और जिसने लिखा है उसके विरुद्ध स्वीकार्य है। इतना ही नहीं यह सह अभियोगियों के विरुद्ध भी स्वीकार्य है, अगर यह उस समय लिखी गई जब षडयंत्र हो रहा था और इसमें लिखी गई बातों को सिद्ध करने योग्य प्रमाण हैं। यह कानून प्रिवी काउंसिल द्वारा ‘‘मिर्जा अकबर’’ के मुकदमे में बनाया गया था और उसके बाद से यह लागू ही रहा है। वित्त मंत्री ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी कई तरह के जवाब मांगती है। क्या आरजी, एपी और एफएएम काल्पनिक चरित्र हैं? या फिर क्या वे सौदे को प्रभावित करने की स्थिति में हैं? यह कैसे हो सकता है कि जब कोई विवादस्पद रक्षा सौदा होता है और प्रमाण इकट्ठे किए जाते हैं तो कांग्रेस पार्टी के पहले परिवार का नाम सामने आने लगता है? उन्होंने कहा कि बोफोर्स मामले में मार्टिन आर्दोबो की डायरी में उल्लिखित ‘क्यू’ अक्षर सामने आया तो यह भी सामने आया कि ‘क्यू’ को हर हालत में बचाया जाए। उस समय भी पार्टी खंडन की मुद्रा में थी।
वह तो जब 1993 मे स्विस अधिकारियों ने बोफोर्स में पैसा लेने वालों के नाम बताए तो एक लाभार्थी ओटावियो क्वात्रोच्ची का नाम भी सामने आया तो नरसिंह राव सरकार ने 24 घंटे में उसके भारत से भागने की व्यवस्था कर दी। लेकिन इससे ‘क्यू’का भूत भाग नहीं पाया जिससे कांग्रेस के चेहरे पर बदनुमा दाग लगा दिया और अब आरजी, एपी और एफएएम के नाम भी ऐसा ही करेंगे। उन्होंने कहा कि जनता भ्रष्ट लोगों को न तो भूलती है और न ही माफ करती है। चुप्पी भ्रष्टाचार के दस्तावेजी प्रमाण का कभी भी कोई उत्तर नहीं हो सकती। किसी अपराधी को चुप रहने का अधिकार तो हो सकता है लेकिन प्रधानमंत्री पद के किसी आकांक्षी को नहीं।