नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कॉलेजियम और सरकार के बीच हुए गोपनीय पत्राचार को सूचना के अधिकार कानून के दायरे में लाये जाने सहित तीन महत्वपूर्ण सवालों पर गुरुवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की संविधान पीठ ने सभी संबंधित पक्षों की वृहद दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान एटर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कॉलेजियम और सरकार के बीच हुए पत्राचार को आरटीआई कानून के दायरे से बाहर रखने का न्यायालय से अनुरोध किया। वेणुगोपाल ने संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि कॉलेजियम और सरकार के बीच हुए पत्राचार को आरटीआई कानून की धारा आठ के तहत छूट मिलनी चाहिए।
उन्होंने न्यायाधीशों की सम्पत्तियों के खुलासे को भी आरटीआई कानून की धारा आठ और के तहत जानकारी उपलब्ध कराने से छूट मिलनी चाहिए। उच्चतम न्यायालय के केंद्रीय जन सम्पर्क अधिकारी की ओर से पेश एटर्नी जनरल ने तीन मामलों की संयुक्त सुनवाई के दौरान अपनी दलीलें पेश की। संविधान पीठ कॉलेजियम और सरकार के बीच हुए पत्राचार की जानकारी उपलब्ध कराने या न कराने, न्यायाधीशों की सम्पत्तियों को आरटीआई के दायरे में लाने तथा मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रघुपति को कथित तौर पर प्रभावित करने वाले केंद्रीय मंत्री के नाम का खुलासा करने संबंधी याचिकाओं पर संयुक्त सुनवाई कर रही थी। गौरतलब है कि जनवरी, 2010 में दिये गये 88 पन्नों के अपने निर्णय में दिल्ली उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने एकल पीठ के उस निर्णय को बरकरार रखा था, जिसमें उसने केन्द्रीय सूचना आयोग के निर्देश के खिलाफ आपत्ति जताने वाली याचिका खारिज कर दी थी।