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गरीबों और वंचितों के मसीहा थे जॉर्ज फर्नांडिस, नेताओं को रखते थे...

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 29 2019 1:08PM | Updated Date: Jan 29 2019 1:09PM
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नई दिल्ली। भारतीय राजनीति के महारथियों में से एक वरिष्ठ समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस जहां ताकतवर से ताकतवर नेताओं को झुकाने की क्षमता रखते थे वहीं वह गरीबों एवं वंचितों मसीहा भी थे। भारतीय राजनीति में एक अलग मुकाम रखने वाले जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म तीन जून 1930 को एक ईसाई परिवार में हुआ था। वह अंग्रेजी सहित नौ अन्य भारतीय भाषाओं के जानकार थे। वह हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी में धारा प्रवाह बोलते एवं लिखते तो थे ही, साथ में तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तेलुगू, कोंकणी और लैटिन भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान रखते थे।
 
वर्ष 2002 में गोधरा दंगों के बाद श्री फर्नांडिस गुजरात की सरकार का बचाव करने वाले प्रमुख लोगों में शामिल थे। श्री नरेंद्र मोदी को जब गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग जोर-शोर से चल रही थी, तब उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेताओं के एक समूह से कहा था कि यह व्यक्ति (मोदी) हिंदुत्व की राजनीति को रोशनी दिखायेगा। 
 
कर्नाटक में मेंगलोर के रहने वाले जॉर्ज फर्नांडिस जब 16 वर्ष के हुए तो उन्हें एक क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने भेज दिया गया हालांकि चर्च में होने वाले तमाम तरह के रीति रिवाजों को देखकर जल्द ही उनका उससे मोहभंग हो गया। आखिरकार 1949 में 18 साल की उम्र में उन्होंने चर्च छोड़ दिया और रोजगार की तलाश में मुंबई (तत्कालीन बंबई) चले गये।
 
मुंबई में वह सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे जिसके कारण उनकी शुरुआती छवि विद्रोही नेता की बनी। फर्नांडिस उस समय के सबसे मुखर वक्ता राम मनोहर लोहिया को अपना प्रेरणास्रोत मानते थे। अपने विद्राही तेवर और नेतृत्व के गुण के चलते 1950 तक वह टैक्सी ड्राइवर यूनियन के बेताज बादशाह बन गए थे।
 
फर्नांडिस बताया करते थे कि जब वह समाजवादी ब्रिगेड में शामिल हुए, उनके पिता ने कहा, मैं चाहता था कि मेरा बेटा ईश्वर की सेवा करे लेकिन उसने इसकी बजाय शैतानों का साथ देना चुना। फर्नांडिस 1967 के लोकसभा चुनाव में बंबई दक्षिण से कद्दावर कांग्रेसी नेता एस. के. पाटिल के खिलाफ उतरे और उन्हें हरा दिया। वर्ष 1973 में वह ‘ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन’ के चेयरमैन चुने गए। भारतीय रेलवे में उस वक्त करीब 14 लाख लोग काम करते थे और सरकार रेलवे कामगारों की कई जरूरी मांगों को कई सालों से दरकिनार कर रही थी।
 
ऐसे में फर्नांडिस ने आठ मई 1974 को देशव्यापी रेल हड़ताल का आह्वन किया और रेल का चक्का जाम हो गया। कई दिनों तक रेल का संचालन ठप रहा। इसके बाद हरकत में आई सरकार ने पूरी कड़ाई के साथ आंदोलन को कुचलते हुए 30 हजार लोगों को गिरफ्तार कर लिया और हजारों को नौकरी और रेलवे की सरकारी कॉलोनियों से बेदखल कर दिया गया।
 
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