कलाकार: करीना कपूर, सोनम कपूर, स्वरा भास्कर, शिखा तल्सानिया, सुमित व्यास
निर्देशक: शशांक घोष
कहानी:
ये कहानी चार दोस्त की है जो अपनी-अपनी जिंदगी से जूझते हैं और उनके दिल टूटते हैं। ये चारों लड़कियां अपनी शर्तों पर जीती हैं और निडर और बेबाक होकर बात करती हैं। इस तरह की फिल्म को देखना अच्छा लगता है जिसमें महिला किरदारों की प्रगतिशीलता और उनकी जिंदगी की कमियों और समस्याओं को दिखाया गया हो। इन किरदारों को गलतियां करने की छूट है और यही इस फिल्म की खूबसूरती है।
फिल्म की कहानी इनकी जिंदगी की उलझनों से वाकिफ कराती है। कालिंदी (करीना कपूर) शादी के झंझटों में फंसी हुई है। शादी करना और रिश्तेदारों की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करना उसे अखरता है। लेकिन वह वक्त के साथ बहती जाती है क्योंकि वह प्यार में है। अवनी (सोनम कपूर) को सोलमेट नहीं मिल रहा है। उसकी मां दिन-रात उसके लिए जीवनसाथी ढूंढने में लगी है। साक्षी (स्वरा भास्कर) रिलेशनशिप में बंधने के लिए बनी ही नहीं है और मीरा (शिखा तल्सानिया) एक विदेशी से शादी कर चुकी है। उसका एक बच्चा भी है लेकिन उसकी शादीशुदा जिंदगी में कोई खुशी नहीं है।
इन चारों सहेलियों की केमिस्ट्री काफी तगड़ी है। कुछ बेहतरीन डायलॉग्स हैं जिन्हें इन ऐक्ट्रेसस ने शानदार तरीके से बोला है। फिल्म के कई सीन आपको खूब हंसाते भी हैं, लेकिन फिल्म का एक हिस्सा है जो बेहतर हो सकता था। फिल्म में किरदारों के जीवन को थोड़ा और विस्तार से दिखाना चाहिए था जिससे दर्शक उन्हें महसूस कर पाएं। दर्शक इन किरदारों की समस्याएं तो समझते हैं लेकिन उनसे खुद को जोड़ नहीं पाते हैं। स्क्रिप्ट पर थोड़ा सा और काम होता तो फिल्म जानदार बन सकती थी।
लड़कियों के डायलॉग दिलचस्प जरूर हैं लेकिन कहीं-कहीं लड़कियों की गप्पेबाजी में काफी समय बर्बाद किया गया है और फिल्म रुकी हुई सी लगती है। पर्दे पर महिलाओं के ऐसे किरदार कम ही देखने को मिलते हैं जो बेबाक होकर अपनी इच्छाओं और सेक्स के बारे में बात करें। 'वीरे दी वेडिंग' इस ओर एक अच्छा प्रयास है। खासकर, इसके डायलॉग्स और प्रॉब्लम्स से युवा खुद को जोड़ सकेंगे।