मुबंई। संजय दत्त की कमबैक फिल्म 'भूमि' सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। ओमंग कुमार के डायरेक्शन में कैसी बनी ये फिल्म, आइए जानते हैं। फिल्म की कहानी उत्तरप्रदेश के आगरा से शुरु होती है। जहां अरुण सचदेव(संजय दत्त) अपनी बेटी भूमि(अदिति राव हैदरी) के साथ रहते हैं। फैमिली के इनकम सोर्स में तौर पर इनकी जूतों की दुकान होती है। भूमि, नीरज(सिद्धांत गुप्ता) से प्यार करती है और दोनों की शादी होने वाली होती है। इसी बीच कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं कि पिता-पुत्री की लाइफ में तूफान ला देते हैं।
फिल्म के विलेन धोली(शरद केलकर) की गैंग के लोग भूमि का रेप कर देते हैं। जिसके बाद शुरु होती है न्याय की लड़ाई। फिल्म में अरुण अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए पुलिस स्टेशन, कोर्ट रूम सभी जगह के चक्कर लगाता है और कहानी आखिरकार एक रिजल्ट पर पहुंचती है। तो भूमि को न्याय मिलता है या नहीं ये जानने के लिए आपको ये फिल्म देखनी होगी। फिल्म में ओमंग कुमार का डायरेक्शन और बैकड्राप अच्छा है। साथ ही फिल्म का आर्ट वर्क भी ठीक है। लेकिन बात अगर कहानी ही करें तो ये काफी घिसी-पिटी है। फिल्म के हर सीन को आसानी से प्रिडिक्ट किया जा सकता है कहीं भी कोई सरप्राइज एलिमेंट नहीं डाला गया है।
आज उनकी ‘न्यूटन’ भी रिलीज हो गई है। ‘न्यूटन’ का नूतन कुमार दिल में उतर जाता है और सिद्ध कर देता है कि राजकुमार एक प्योर एक्टर है। वे विषय आधारित फिल्में चुन रहे है और हर रोल को मंजे हुए ढंग से निभा रहे है। ‘न्यूटन’ में वे एक सरकारी कर्मचारी के रोल में हैं जो रूल बुक के मुताबिक चलता है। जिसके कुछ ऊसूल हैं और वे किसी भी कीमत पर उनको फॉलो करने में यकीन करता है। तभी तो वह 18 साल की कम उम्र की लड़की से शादी करने से इनकार कर देता है और चुनाव ड्यूटी पर ताश खेलने वाले अधिकारी को हड़का देता है। फिल्म कहानी की नजर से मजबूत है। एक्टिंग के लिहाज से मलाई जैसी है। इस तरह न्यूटन छोटी लेकिन बड़े दिल वाली फिल्म है।
दिल को छू लेने वाले डायलॉग
‘न्यूटन’ के इन दो डायलॉग पर जरा गौर फरमाइएः “मां-बाप ने नूतन कुमार नाम रखा था तो सब लोग बहुत मजाक उड़ाते थे तो मैंने टेंथ के फॉर्म में‘नू’ का ‘न्यू’ और ‘तन’ का ‘टन’ कर दिया। “मेरे से भी पहले बहुत पहले एक न्यूटन था। पढ़ाई करे वक्त उसकी बात कभी समझ नहीं आई पर अब काम करते वक्त आ रही है कि जब तक कुछ नहीं बदलोगे न दोस्त तो कुछ नहीं बदेलगा।” फिल्म इसी तरह के हल्के-फुल्के लेकिन गहरे संवादों से भरी पड़ी है। बहुत ही प्यार से गहरी बात कह जाना फिल्म की खासियत है। इस वजह से इलेक्शन जैसा गंभीर विषय और भी मारक बन पड़ा है।