निर्माता: कृषिका लुल्ला, अनुष्का शर्मा, कर्नेश शर्मा, विकास बहल, विक्रमादित्य मोटवाने, अनुराग कश्यप
निर्देशक: नवदीप सिंह
कलाकार: अनुष्का शर्मा, नील भूपलम, दर्शन कुमार
रेटिंग: 3.5/5
कहानी:
मीरा (अनुष्का शर्मा) और अर्जुन (नील भूपलम) पति-पत्नी हैं जो गुड़गांव में रहते हैं और बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों में नौकरी करते हैं। एक रात किसी जरूरी काम के लिए ऑफिस जा रही मीरा पर सड़क पर कुछ लोग हमला करते हैं। किसी तरह वो बच निकलती है। बुरी तरह घबराए पति-पत्नी अगली सुबह पुलिस स्टेशन जाते हैं लेकिन पुलिसवाला उनसे कहता है कि ‘ये शहर बढ़ता बच्चा है, कूद तो लगाएगा ही’।
ये हादसा भुलाने के लिए अर्जुन और मीरा छुट्टी पर जाने का फैसला करते हैं। एनएच10 पर सफर के दौरान वो रास्ते में वे ढाबे पर चाय पीने रूकते हैं। यहां एक लड़की और लड़के को कुछ लोग पीट रहे हैं। अर्जुन दखल देता है और जंगली किस्म के ये लोग मीरा-अर्जुन के पीछे पड़ जाते हैं। अर्जुन और मीरा के लिए आगामी कुछ घंटे नरक के समान होते हैं। जंगलों और गांवों में भटकते हुए उनका सामना एक ऐसे भारत से होता है जहां जंगल राज चल रहा है। फिल्म के एक संवाद से भारत के अंदरुनी इलाकों की भयावह स्थिति की झलक मिलती है जब एक किरदार कहता है 'गांव में पानी और बिजली तो पहुंचे नहीं है तो संविधान कैसे पहुंचेगा?'
गुंडों से भागती हुई जब मीरा पुलिस के पास पहुंचती है तो मदद के बजाय पुलिस उसे गुंडों को सौंप देती है। पुलिस वालों को भी डर है कि गांव वाले उनका हुक्का-पानी बंद नहीं कर दे आखिर उन्हें भी तो अपनी संतानों की शादी करनी है। बड़े शहर में रहने वाली मीरा पहली बार इस तरह की स्थिति का सामना करती है। इन सारी बातों के बीच मीरा-अर्जुन के पीछे भागते गुंडों के जरिये थ्रिल पैदा किया गया है।
फिल्म की स्क्रिप्ट सुदीप शर्मा ने लिखी है और उन्होंने संक्षिप्त कहानी पर बेहद टाइट स्क्रिप्ट लिखी है। मीरा और अर्जुन के साथ जिस तरह की घटनाएं घटती हैं उससे दर्शक हिल जाता है। मीरा को उन्होंने हीरो की तरह पेश किया है। क्लाइमेक्स में फिल्म अनुष्का शर्मा की 'बदलापुर' बन जाती है, लेकिन यहां स्क्रिप्ट का फिल्मी हो जाना अच्छा लगता है। मीरा अपने दुश्मन को मारने के पहले सिगरेट के कश लगाती है और गुंडे की आंखों में भय देख उसे सुकुन मिलने वाला दृश्य बेहतरीन बन पड़ा है।