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Gagar Men Sagar

पंछियों को पिंजरा नहीं खुला आसमान चाहिए

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 31 2015 2:21PM | Updated Date: Mar 31 2015 2:23PM
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चंद्र प्रकाश के चार साल के बेटे को पंछियों से बेहद प्यार था। वह अपनी जान तक न्योछावर करने को तैयार रहता। ये सभी पंछी उसके घर के आंगन में जब कभी आते तो वह उनसे भरपूर खेलता। उन्हें जी भर कर दाने खिलाता। पेट भर कर जब पंछी उड़ते तो उसे बहुत अच्छा लगता। एक दिन बेटे ने अपने पिताजी से अपने मन की एक इच्छा प्रकट की।  पिताजी, क्या चिड़िया, तोता औ कबूतर की तरह मैं नहीं उड़ सकता? 
नहीं, पिताजी ने पुत्र को पुचकारते हुए कहा। क्यों नहीं? क्योंकि बेटे, आपके पंख नहीं हैं। पिताजी, क्या चिड़िया, तोता और कबूतर मेरे साथ नहीं रह सकते हैं? क्या शाम को मैं उनके साथ खेल नहीं सकता हूं?
 
 
 
क्यों नहीं बेटे? हम आज ही आपके लिए चिड़िया, तोता औ कबूतर ले आएंगे। जब जी चाहे उनसे खेलना। हमारा बेटा हमसे कोई चीज मांगे और हम नहीं लाएं, ऐसा कैसे हो सकता है? शाम को जब चन्द्र प्रकाश घर लौटे तो उनके हाथों में तीन पिंजरे थे - चिड़िया, तोता और कबूतर के। तीनों पंछियों को पिंजरों में दुबके पड़े देखकर पुत्र खुश न हो सका।  बोला- पिताजी, ये इतने उदास क्यों हैं? बेटे, अभी ये नए-नए मेहमान हैं।
 
 
 
एक-दो दिन में जब ये आप से घुल मिल जाएंगे तब देखना इनको उछलते-कूदते और हंसते हुए? चन्द्र प्रकाश ने बेटे को तसल्ली देते हुए कहा। 
दूसरे दिन जब चन्द्र प्रकाश काम से लौटे तो पिंजरों को खाली देखकर बड़ा हैरान हुए। पिंजरों में न तो चिड़िया थी और न ही तोता और कबूतर। उन्होंने पत्नी और फिर  पुत्र से पूछा- बेटे, ये चिड़िया, तोता औ कबूतर कहां हैं? पिताजी, पिंजरों में बंद मैं उन्हें देख नहीं सका। मैंने उन्हें उड़ा दिया है। अपनी भोली जुबान में जवाब देकर बेटा बाहर आंगन में आकर आकाश में लौटते हुए पंछियों को देखने लगा।
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