किसी नगर में एक सेठ रहते थे। उनके पास सब तरह के सुख थे, पर एक तकलीफ भी थी। सेठ को रात को नींद नहीं आती थी। कभी आंख लग भी जाती तो भयंकर सपने आते। उन्होंने बहुत इलाज कराया, लेकिन रोग घटने के बजाय बढ़ता ही गया। एक दिन एक साधु उस नगर में आए। सेठ को पता चला तो वह भी उनके पास जा पहुंचे और अपनी विपदा उन्हें सुनाई। बोले- 'महाराज जैसे भी हो, मेरा कष्ट दूर कर दीजिए।'
साधु ने कहा- 'सेठजी, आपके रोग का एक ही कारण है और वह यह कि आप अपंग हैं।' सेठ ने विस्मय से उनकी ओर देखा और पूछा- 'आप मुझे अपंग कैसे कह सकते हैं? यह देखिए, मेरे अच्छे-खासे हाथ पैर हैं।' साधु ने हंसकर कहा-'अपंग वह नहीं होता जिसके हाथ-पैर नहीं होते। बताओ, शरीर से तुम कितना काम करते हो?' सेठ क्या जवाब देता! वह तो हर छोटे-बड़े काम के लिए अपने नौकरों पर ही निर्भर रहता था।
साधु ने कहा- 'अगर तुम रोग से बचना चाहते हो तो अपने हाथ-पैरों से इतनी मेहनत करो कि थककर चूर हो जाओ। मेहनत की ताकत तुम्हारी बीमारी दो दिन में ठीक कर देगी।' सेठ ने यही किया। साधु की बात एकदम सही निकली। दूसरे दिन रात को सेठ को इतनी गहरी नींद आई कि वह चकित रह गया। उसने साधु के प्रति आभार प्रकट किया।