हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी गांव में एक बूढ़ा रहता था, जिसे लोग महामूर्ख समझते थे। उसके घर के सामने दो बड़े पहाड़ थे, जिससे आने-जाने में असुविधा होती थी। पहाड़ के दूसरी ओर पहुंचने में कई दिन लग जाते। एक दिन उसने अपने दोनो बेटों को बुलाया और उनके हाथों में फावड़ा थमाकर दृढ़ता से दोनों पहाड़ों को काट कर उनके बीच रास्ता बनाना शुरू कर दिया।
यह देखकर लोगों ने उसका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया- तुम सचमुच महामूर्ख हो। इतने बड़े- बड़े पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाना तुम बाप-बेटों के बस से बाहर है। बूढ़े ने उत्तर दिया- मेरी मृत्यु के बाद मेरे बेटे यह कार्य जारी रखेंगे। बेटों के बाद पोते और पोतों के बाद परपोते। इस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहाड़ काटने का काम जारी रहेगा। पहाड़ बड़े हैं, लेकिन हमारे हौसलों और मनोबल से अधिक बड़े तो नहीं हो सकते।
हम निरंतर खोदते हुए एक न एक दिन रास्ता बना ही लेंगे। आने वाली पीढ़ियां आराम से उस रास्ते से पहाड़ के उस पार जा सकेंगी। उस बूढ़े की बात सुनकर लोग दंग रह गए कि जिसे वे महामूर्ख समझते थे उसने सफलता के मूलमंत्र का रहस्य समझा दिया। गांव वाले भी उत्साहित होकर पहाड़ काट कर रास्ता बनाने के उसके काम में जुट गए। कुछ महीनों के परिश्रम के बाद वहां एक सुंदर सड़क बन गई और दूसरे शहर तक जाने का मार्ग सुगम हो गया। इसके लिए बूढ़े को भी दूसरी पीढ़ी प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी।