17 Apr 2024, 03:34:57 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

उन दिनों अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति थे। आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे एक व्यक्ति ने जेल में दस साल शांति और प्रेम से बिताने के बाद शेष सजा माफ किए जाने का प्रार्थना-पत्र राष्ट्रपति लिंकन के पास भेजा। प्रार्थना-पत्र के साथ उन दिनों किसी विशिष्ट व्यक्ति या कैदी के किसी जिम्मेदार संबंधी का संस्तुति-पत्र नत्थी किया जाना आवश्यक होता था। ऐसा न करने पर पर कैदी की माफी की अपील पर विचार ही नहीं होता था।
 
 
कैदी ने प्रार्थना-पत्र में अपनी योग्यता, प्रतिभा व कार्य का विवरण तो भेजा, लेकिन कोई संस्तुति-पत्र नत्थी न कर पाया। उसे पढ़कर लिंकन बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने कैदी की सजा माफ किए जाने पर गंभीरता से विचार किया, लेकिन उनके कानूनी सलाहकार ने कहा, 'सर, इस कैदी के प्रार्थना-पत्र के साथ किसी विशिष्ट व्यक्ति या संबंधी का संस्तुति-पत्र तो संलग्न ही नहीं है। नियमों के अनुसार इसकी सजा माफ किए जाने पर  विचार नहीं किया जा सकता।'
 
 
यह सुनकर लिंकन ने कैदी की सचाई के बारे में पता लगाया। उन्हें मालूम हुआ कि वह कैदी वास्तव में सुधर गया था और जिम्मेदार नागरिक बनने की कोशिश कर रहा था। जेल अधिकारियों के अलावा साथी कैदियों ने भी इस बात की पुष्टि की। यह जानकर लिंकन ने कानूनी सलाहकार से कहा, 'भले ही उसका कोई सिफारिशी नहीं है, लेकिन वह वाकई इस काबिल है कि शेष सजा माफ कर उसे सामान्य जीवन बिताने का मौका मिले। इसलिए मैं उसका संस्तुति-पत्र लिखता हूं।' बस, उन्होंने उस कैदी का प्रार्थना-पत्र स्वीकार कर लिया। कैदी को इस बात का पता चला तो वह न्याय की इस मिसाल के प्रति श्रद्धा से भर उठा।
 
 
 
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