20 Apr 2024, 21:52:57 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

एक समय महात्मा बुद्ध राजगृह में थे। जनसमूह को नित्य प्रवचन देने के उपरांत वह सायंकाल अपने शिष्यों के साथ बैठकर विभिन्न विषयों पर वातार्लाप किया करते थे। ऐसा करने से शिष्यों का तो ज्ञानवर्धन होता ही था, बुद्ध को भी उन सभी का तुलनात्मक बौद्धिक स्तर ज्ञात हो जाता था। एक दिन इसी तरह महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। अचानक उन्होंने अपने शिष्यों से एक प्रश्न पूछा-'क्या तुममें से कोई यह बता सकता है कि सबसे उत्तम  जल कौन सा है?'

 

एक शिष्य ने तत्काल उत्तर दिया-गंगाजल। बुद्ध ने नकारात्मक मुद्रा में सिर हिलाया। दूसरे शिष्य ने कहा-जमीन पर गिरने से पहले का वर्षा का जल सबसे उत्तम होता है। बुद्ध उसके उत्तर से भी सहमत नहीं थे। तीसरे शिष्य का विचार था- उषाकाल की किरणों में चमकता ओस जल सबसे उत्तम होगा। बुद्ध इस बार भी संतुष्ट नहीं हो पाए। चौथे शिष्य की दृष्टि में बिछुड़े बेटे से मिलने पर मां की आंखों में आया अश्रुजल सबसे उत्तम जल था तो पांचवें शिष्य के अनुसार फरेब से इकट्ठा किए धन को देखकर मरणासन्न धनी की आंखों से पश्चाताप स्वरूप निकलने वाले आंसू से बेहतर कोई जल न था।

 

महात्मा बुद्ध फिर बोले - नहीं, इससे कहीं अधिक वंदनीय व पवित्र जल भी है। काफी देर से मौन बैठे शिष्य आनंद ने कहा - सर्दी, गर्मी और वर्षा में रात-दिन कठोर परिश्रम कर हमारे लिए अन्न पैदा करने वाले किसान का श्रम जल सबसे उत्तम है। यह उत्तर सुनकर बुद्ध के चेहरे पर संतुष्टि की आभा फैल गई। उन्होंने प्रसन्न होकर आनंद को अपना विशेष आशीष दिया।

 
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »