20 Apr 2024, 11:36:44 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

बात साबरमती आश्रम में गांधी जी के प्रवास के दिनों की है। एक दिन एक गांव के कुछ लोग बापू के पास आए और उनसे कहने लगे, बापू कल हमारे गांव में एक सभा हो रही है, यदि आप समय निकाल कर जनता को देश की स्थिति व स्वाधीनता के प्रति कुछ शब्द कहें तो आपकी कृपा होगी।

गांधी जी ने अपना कल का कार्यक्रम देखा और गांव के लोगों के मुखिया से पूछा, सभा के कार्यक्रम का समय कब है? मुखिया ने कहा, हमने चार बजे निश्चित कर रखा है। गांधी जी ने आने की अपनी अनुमति दे दी। मुखिया बोला, बापू मैं गाड़ी से एक व्यक्ति को भेज दूंगा, जो आपको ले आएगा। आपको अधिक कष्ट नहीं होगा।

गांधी जी मुस्कराते हुए बोले, अच्छी बात है, कल निश्चित समय मैं तैयार रहूंगा।अगले दिन जब पौने चार बजे तक मुखिया का आदमी नहीं पहुंचा तो गांधी जी चिंतित हो गए। उन्होंने सोचा अगर मैं समय से नहीं पहुंचा तो लोग क्या कहेंगे। उनका समय व्यर्थ नष्ट होगा। गांधी जी ने एक तरीका सोचा और उसी के अनुसार अमल किया।

कुछ समय पश्चात मुखिया गांधी जी को लेने आश्रम पहुंचा तो गांधी जी को वहां नहीं पाकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। लेकिन वह क्या कर सकते थे। मुखिया सभा स्थल पर पहुँचा तो उन्हें यह देख कर और अधिक आश्चर्य हुआ कि गांधी जी भाषण दे रहे हैं और सभी लोग तन्मयता से उन्हें सुन रहे हैं।

भाषण के उपरांत मुखिया गांधी जी से मिला और उनसे पूछने लगा, मैं आपको लेने आश्रम गया था लेकिन आप वहां नहीं मिले फिर आप यहां तक कैसे पहुंचे?गांधी जी ने कहा, जब आप पौने चार बजे तक नहीं पहुंचे तो मुझे चिंता हुई कि मेरे कारण इतने लोगों का समय नष्ट हो सकता है इसलिए मैंने साइकिल उठाई और तेजी से चलाते हुए यहां पहुंचा मुखिया बहुत शर्मिंदा हुआ।

गांधी जी ने कहा, समय बहुत मूल्यवान होता है। हमें प्रतिदिन समय का सदुपयोग करना चाहिए। किसी भी प्रगति में समय महत्वपूर्ण होता है। अब उस युवक की समझ में मर्म आ चुका था।
 

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