19 Apr 2024, 11:37:06 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

मनुष्य का व्यक्तित्व व प्रभाव झलकता है उसकी वाणी से। जिस तरह संगीत वाद्ययंत्र की पहचान उसके स्वर से होती है, उसी तरह व्यक्ति की पहचान उसकी वाणी से होती है। गायत्री परिवार के संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने कहा था- बोलने का अंदाज, वाणी में झलकता भाव सुनने वाले अन्यत्र व्यक्तियों पर अपना प्रभाव डालता है। वाणी की इसी विशेष अभिव्यक्ति के कारण रंगमंच, नाट्यशालाएं बनीं, फिल्म उद्योग बने, जहां पर लोग अभिनय के माध्यम से आज भी जीवन के महत्वपूर्ण दृश्यों का अंकन करते हैं।  लोगों को प्रेरित व प्रभावित करते हैं। जनता तक अभिनय के द्वारा विभिन्न तरह के संदेश प्रेषित किए जाते हैं। जब इस सबका आविष्कार नहीं हुआ था, उस समय भी गांवों में रामलीला या कृष्णलीला होती थी, जिसमें रामकथा या कृष्णकथा को अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता था। पहले तो इन्हीं कथाओं का प्रचलन अधिक था, लेकिन समय बीतने के साथ, सुविधाओं व तकनीकों के बढ़ने के बाद इतिहास के विभिन्न दृश्यों व विशेष पात्रों को वर्तमान में अभिनय के द्वारा फिल्म, धारावाहिक आदि में जीवंत किया गया। घर-घर की कहानियों आदि को भी इसके माध्यम से अभिव्यक्ति मिली। इन अभिनयों में शारीरिक वेशभूषा, भावभंगिमा से बढ़कर महत्वपूर्ण वाणी होती है। वाणी एक तरह से अभिनय की आत्मा है, यदि यह नहीं तो अभिनय भी संपूर्ण नहीं। जीवन में हम सभी एक तरह का अभिनय करते हैं, चूंकि जाग्रत रहते हुए कई तरह का अभिनय नहीं करते। हमारा जीवन एक रंगमंच की तरह है, जिसमें भगवान ने हमें एक तरह का अभिनय करने के लिए इस संसार में भेजा है। हम जीवन भर अभिनय की उस भूमिका को निभाते रहते हैं। यह अभिनय ही हमारे व्यक्तित्व की छाप बन जाता है।

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