19 Apr 2024, 16:19:08 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

शिष्य का क्या मतलब है? जिसे शिक्षा दी जा रही हो, वह हुआ शिष्य। हालांकि यह कोई बहुत अच्छी श्रेणी नहीं है, क्योंकि उपदेश देने वाले ने तो दे दिया, पर यदि तुमने उसे धारण ही नहीं किया तो तुम शिष्य नहीं, बल्कि चेला कहलाओगे। शिष्य वह है, जो अपने जीवन को उत्कर्ष की, विकास की ओर ले जाए। जो मोह और अज्ञान से अपने आपको बाहर निकालना चाहता है, ऐसे शिष्य को गुरु जब उपदेश देते हैं तो उससे उसे लाभ होता है। जिसके जीवन में ऊपर उठने की तमन्ना ही नहीं है और न ही वह अपने अज्ञान को दूर करना चाहता है, वह गुरु के पास बड़े गलत कारणों से टिका रह सकता है। यह तो चेला होने का लक्षण है। चेला गलत कारणों से गुरु के पास जाता है और शिष्य सही कारणों से। शिष्य की पहली सीढ़ी यह है कि वह अपने जीवन में श्रेष्ठता, ज्ञान, प्रेम, भक्ति और सात्विकता को बढ़ाना चाहता है। जब शिक्षा मिली, ज्ञान मिला तो इस ज्ञान की प्राप्ति से बर्हिमुख होने की दौड़ बंद हो गई और अंतर्मुखता बढ़ती गई। यह है शिष्य का दूसरा लक्षण। शिष्यत्व की बात तभी पूरी होती है, जब उपदेश सुनने के बाद अंतर्मुखता बढ़ती है और बाहर की दौड़ बंद हो जाती है। यदि बहिर्मुखता वैसी की वैसी बनी रहे तो वह चेला ही रहेगा। ऐसे चेले का कभी कल्याण नहीं होगा। गुरु तो शिष्य का ही कल्याण कर सकता है। बड़े से बड़ा, पहुंचा हुआ गुरु भी किसी चेले का कल्याण नहीं कर सकता। शिष्य होने के लिए सुने हुए ज्ञान का चिंतन कर, एकांत में बैठ कर ध्यान-साधना करनी चाहिए। जिसकी बाहरी वृत्तियां शांत हो चुकी हैं, वही शिष्य है। शिष्य का तीसरा लक्षण है, जो इस ज्ञान के मार्ग पर बहना चाहता है, बरसना चाहता है, फैलना चाहता है, विस्तृत होना चाहता है।

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »