यूनान के महान दार्शनिक थे सुकरात। उनकी पत्नी झगड़ालू थी। वह छोटी-छोटी बातों पर अमूमन सुकरात से लड़ती थी। लेकिन हर समय सुकरात शांत रहते। सुकरात के पढ़ने की आदत पत्नी को ठीक नहीं लगती थी। एक दिन सुकरात अपने कुछ शिष्यों के साथ घर आए तो पत्नी किसी बात को नाराज हो गई। सुकरात ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, तो वह ऊंची आवाज में सुकरात को भला-बुरा कहने लगी। इतना कुछ होने पर भी सुकरात कुछ न बोले तो उनकी पत्नी ने बाहर से कीचड़ उठाकर सुकरात के मुंह पर डाल दिया। सुकरात जोर से हंसे और कहा, 'तुमने आज पुरानी कहावत झुठला दी। कहा जाता है जो गरजते हैं बरसते नहीं, लेकिन तुम गरजती भी हो और बरसती भी हो।' सभी शिष्य यह घटनाक्रम देख रहे थे। एक शिष्य ने सुकरात से पूछा, 'आप ये सब कैसे सह लेते हैं। 'सुकरात बोले, 'वह योग्य है। वह ठोकर लगाकर देखती है कि सुकरात कच्चा है या पक्का। उसके इस व्यवहार से मुझे पता चलता है कि मेरे अंदर सहनशीलता है या नहीं। ऐसा करके वह मेरा भला कर रही है।' पत्नी ने जब यह शब्द सुने तो वह बहुत शर्मिंदा हुई। उसने कहा, 'मुझे क्षमा करें। आप देवता है, मैंने यह जानने में भूल की।' उस दिन से पत्नी का व्यवहार बदल गया। सहनशीलता एक ऐसा गुण है यदि इसे विकसित कर लिया जाए तो बड़ी से बड़ी मुश्किलें दूर की जा सकती हैं।