बात उस समय की है जब विनोबा भावे के पवनार आश्रम में एक शराबी आया। वह विनोबा जी से कहने लगा- 'बाबा, शराब के नशे ने मेरा घर तबाह कर दिया है क्या करूं ?' विनोबा जी ने कहा, 'शराब पीना छोड़ दो।' उस व्यक्ति ने कहा, 'क्या करूं नहीं छूटती है शराब। आप ही कोई उपाय बताएं।' विनोबा जी कुछ देर शांत रहे और फिर बोले, 'शाम को चार बजे आना। वह व्यक्ति तय समय पर आश्रम पहुंचा। और विनोबा जी को पुकारने लगा।' विनोबा जी ने अंदर से ही कहा, 'क्या करूं मुझे खंभे ने पकड़ रखा है मैं बाहर नहीं आ सकता।' उस व्यक्ति ने घर के अंदर झांका तो खंभे को स्वयं विनोबा जी पकड़े हुए थे। वह व्यक्ति बोला, 'हे आचार्य खंभा आपको नहीं छोड़ रहा, या आप खंभे को नहीं छोड़ रहे। यह सुनकर विनोबा जी हंस पड़े।' उन्होंने कहा, 'तुम भी तो शराब नहीं छोड़ना चाहते लेकिन कहते हो शराब छूटती नहीं।' वह व्यक्ति विनोबा जी की बात को समझ गया। और उसने शराब को हमेशा-हमेशा छोड़ने की शपथ ली।'