एक दिन नसरुद्दीन कहीं जा रहा था कि उसने सड़क पर एक दु:खी आदमी को देखा जो ऊपरवाले को अपने खोटे नसीब के लिए कोस रहा था। नसरुद्दीन ने उसके करीब जाकर उससे पूछा, ''क्यों भाई, इतने दु:खी क्यों हो?''वह आदमी नसरुद्दीन को अपना फटा-पुराना झोला दिखाते हुए बोला ''इस भरी दुनिया में मेरे पास इतना कुछ भी नहीं है जो मेरे इस फटे-पुराने झोले में समा जाए। '' ''बहुत बुरी बात है'' नसरुद्दीन ने कहा और उस आदमी के हाथ से झोला झपटकर सरपट भाग लिया। अपना एकमात्र माल-असबाब छीन लिए जाने पर वह आदमी रो पड़ा। वह अब पहले से भी ज्यादा दु:खी था। अब वह क्या करता! वह अपनी राह चलता रहा। दूसरी ओर, नसरुद्दीन उसका झोला लेकर भागता हुआ सड़क के एक मोड़ पर आ गया और मोड़ के पीछे उसने वह झोला सड़क के बीचोंबीच रख दिया ताकि उस आदमी को जरा दूर चलने पर अपना झोला मिल जाए। दु:खी आदमी ने जब सड़क के मोड़ पर अपना झोला पड़ा पाया तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। वह खुशी से रो पड़ा और उसने झोले को उठाकर अपने सीने से लगा लिया और बोला, ''मेरे झोले, मुझे लगा मैंने तुम्हें सदा के लिए खो दिया!''झाड़ियों में छुपा नसरुद्दीन यह नजारा देख रहा था। वह हंसते हुए खुद से बोला ''ये भी किसी को खुश करने का शानदार तरीका है!