जब वैशाली में धम्म प्रचार के लिए गौतम बुद्ध गए तब कुछ सैनिक भागती हुई लड़की का पीछा कर रहे थे। सैनिकों से बचती हुई वह लड़की एक कुएं के पास खड़ी हो गई। गौतम बुद्ध उस कुएं के पास गए और उस लड़की से बोले, आप स्वयं भी जल पीएं और मुझे भी जल पिलाएं। तभी एक सैनिक वहां पहुंचा। गौतम बुद्ध ने उसे रोक दिया। वह लड़की की तरफ देखते हुए बोले, 'क्या हुआ?' वह लड़की बोली, मैं अछूत हूं। मेरे द्वारा कुएं से पानी निकालने पर यह दूषित हो जाएगा। तथागत ने कहा, 'तुम्हारे द्वारा कुएं से पानी निकालने से यह दूषित नहीं होगा। तुम कुएं से पानी निकालो।' तभी वहां वैशाली नरेश भी आ गए। उन्होंने गौतम बुद्ध को नमन कर सोने के बर्तन में गुलाब की सुगंध वाला पानी पेश किया। तथागत ने इसे पीने से मना कर दिया। बालिका ने जब यह देखा तो, उसने तुरंत कुएं से पानी निकाला, स्वयं भी पिया और तथागत को भी जल पिलाया। पानी पी लेने के बाद उस लड़की ने कहा, मुझे राजा के दरबार में गाने के लिए बुलाया गया। मुझे राजा ने पुरस्कार भी दिया। लेकिन किसी ने मेरे बारे में बताया कि में अछूत कन्या हूं इसलिए सैनिक मुझसे यह पुरस्कार वापस लेना चाहते हैं। यह सुनकर तथागत को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने वैशाली नरेश से कहा, राजन्! अछूत यह बालिका नहीं बल्कि आप है। जिस मधुर कंठ से निकले गीत का आनंद उठाकर आपने इसे पुरस्कृत किया। उसे ही आप बंदी बना रहे हैं। यह सुनकर नरेश को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने उस लड़की को सम्मानपूर्वक उसके घर भिजवाया। इनसान की पहचान उसके कर्मों से होती है। उसकी जाति, धर्म, संप्रदाय या क्षेत्र विशेष से नहीं, जो लोग किसी भी इंसान को जाति, धर्म और संप्रदाय का ताना देकर बुलाते हैं। उनसे बड़ा मूर्ख व्यक्ति कोई हो ही नहीं सकता।