25 Apr 2024, 09:42:27 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

एक संत थे, बड़े तपस्वी और बहुत संयमी। लोग उनके धैर्य की प्रशंसा करते थे। एक दिन उनके मन में विचार आया कि उन्होंने खान-पान पर तो संयम कर लिया, लेकिन दूध पीना उन्हें बहुत प्रिय था। उसे त्याग करने के बारे में मन बनाया। इस तरह संत ने दूध पीना छोड़ दिया। सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने इस व्रत का कड़े नियम से पालन किया। ऐसा करते हुए कई साल बीत गए। एक दिन संत के मन में विचार आया कि आज दूध पिया जाए। फिर तो न चाहते हुए भी उनकी दूध पीने की इच्छा प्रबल हो गई। तभी उन्हें एक धनी व्यक्ति के यहां से भोजन का बुलावा आया। उन्?होंने उस सेठ से कहा, आज सिर्फ मैं दूध पीना चाहूंगा। उन सेठजी को पता था कि संत ने दूध न पीने का कठिन दृढ़ निश्चय किया है। शाम को सेठजी ने 40 घड़े संत की कुटिया के बाहर रखवाये। उन सभी में दूध भरा हुआ था। सेठजी पहुंचे और कहा आप ये पूरा दूध पी लीजिए। संत ने कहा, मुझे अकेले को ही दूध पीना है फिर आप इतने घड़े क्यों ले आए? सेठजी ने कहा, महाराज आपने दूध पीना 40 साल से छोड़ रखा है, उस हिसाब से दूध के 40 बड़े घड़े आपके सामने हैं। संत, सेठजी की बातों को समझ गए। उन्होंने क्षमा मांगते हुए कहा, मैंने मन के टूटते संयम पर अब नियंत्रण पा लिया है। मन किसी भी उम्र में विपरीत प्रभाव डाल देता है। इसके नियंत्रण का एक ही उपाय है। और वो है अभ्यास। किंतु सतत् अभ्यास जड़ता के रूप में न हो जाए, इसलिए इसमें चैतन्यता बनाए रखनी चाहिए। मनुष्य का मन चंचल बच्चे की तरह होता है। वह कभी तो मान जाता है और कभी उछल कूद करने लगता है। अत: उसे नियंत्रित करने के नए-नए उपाय खोजने पड़ते हैं। जिस मनुष्य का मन नियंत्रण में रहता है। उसके निर्णय कभी गलत नहीं होते हैं।

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