चीन में महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस का बहुत सम्मान था। उनके विचारों से लोग इस कदर प्रभावित थे कि दूर-दूर से अपनी जिज्ञासाएं लेकर उनके पास पहुंच जाते। कन्फ्यूशियस उनकी परेशानियों को धैर्यपूर्वक सुनते और उत्तर देते। इससे लोग हमेशा संतुष्ट होकर ही वापस लौटते। एक बार कन्फ्यूशियस के एक शिष्य ने उनसे पूछा- 'एक अच्छे राष्ट्र के लिए क्या-क्या चीजें बहुत जरूरी होती हैं? एक राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिए किन चीजों का सर्वाधिक महत्व होता है?'
कन्फ्यूशियस ने शिष्य की बातों को ध्यान से सुना और फिर जवाब दिया- 'एक शक्तिशाली राष्ट्र के लिए तीन चीजें बहुत जरूरी होती हैं- पहली सेना, दूसरा अनाज और तीसरी आस्था।' शिष्य ने फिर उनसे पूछा- 'यदि इन तीनों में से कोई एक न मिले तो? ऐसे में, इनमें से किसके बिना राष्ट्र का काम चलाया जा सकता है?' कन्फ्यूशियस का उत्तर था- 'देखो, ऐसे में सेना को छोड़ा जा सकता है, लेकिन अनाज और आस्था के बिना कोई भी देश जीवित नहीं बचा रह सकता।'
शिष्य ने फिर जिज्ञासा व्यक्त कर दी- यदि किसी मजबूरी में इन दोनों में से भी किसी एक को छोड़ना ही पड़ जाए तो किसे छोड़ा जा सकता है?' प्रश्न सुनकर कन्फ्यूशियस कुछ देर खामोश रहे। फिर कुछ सोचकर शिष्य से बोले- 'तब फिर अनाज को छोड़ा जा सकता है, लेकिन आस्था को कदापि नहीं छोड़ा जा सकता। आस्था के नहीं रहने से तो राष्ट्र भी नहीं रहेगा। देखा जाए तो आस्था से ही एक राष्ट्र बनता है। एक सच्चा राष्ट्र अपनी आस्था से ही चिरंजीवी हो सकता है, वही उसकी असल पहचान है।