28 Mar 2024, 16:02:20 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

धनुर्विद्या के कई मुकाबले जीतने के बाद एक युवा धनुर्धर को अपने कौशल पर घमंड हो गया और उसने एक जेन-गुरु को मुकाबले के लिए चुनौती दी। जेन-गुरु स्वयं बहुत प्रसिध्द धनुर्धर थे। युवक ने अपने कौशल का प्रदर्शन करने के लिए दूर एक निशाने पर अचूक तीर चलाया। उसके बाद उसने एक और तीर चलाकर निशाने पर लगे तीर को चीर दिया। फिर उसने अहंकारपूर्वक जेन-गुरु से पूछा ‘क्या आप ऐसा कर सकते हैं?’ जेन-गुरु इससे विचलित नहीं हुए और उसने युवक को अपने पीछे-पीछे एक पहाड़ तक चलने के लिए कहा।

युवक समझ नही पा रहा था कि जेन-गुरु के मन में क्या था इसलिए वह उनके साथ चल दिया। पहाड़ पर चढ़ने के बाद वे एक ऐसे स्थान पर आ पहुंचे जहां दो पहाड़ों के बीच बहुत गहरी खाई पर एक कमजोर सा रस्सियों का पुल बना हुआ था। पहाड़ पर तेज हवाएं चल रहीं थीं और पुल बेहद खतरनाक तरीके से डोल रहा था। उस पुल के ठीक बीचोंबीच जाकर जेन-गुरु ने बहत दूर एक वृक्ष को निशाना लगाकर तीर छोड़ा जो बिल्कुल सटीक लगा। पुल से बाहर आकर जेन-गुरु ने युवक से कहा ‘अब तुम्हारी बारी है’।

यह कहकर जेन-गुरु एक ओर खड़े हो गए। भय से कांपते-कांपते युवक ने स्वयं को जैसे-तैसे उस पुल पर किसी तरह से जमाने का प्रयास किया पर वह इतना घबरा गया था कि पसीने से भीग चुकी उसकी हथेलियों से उसका धनुष फिसल कर खाई में समा गया। ‘इसमें कोई संदेह नही है की धनुर्विद्या में तुम बेमिसाल हो’ जेन-गुरु ने उससे कहा ‘लेकिन उस मन पर तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं जो किसी तीर को निशाने से भटकने नहीं देता’।

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