सर्वोच्च न्यायलय द्वारा काले धन पर गठित विशेष जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में काले धन के जिन स्रोतों पर सेबी को आगाह किया है, वे एक गंभीर चिंता का विषय बनकर उभरे हैं। सिर्फ भारत से पैसा बाहर ले जाकर स्विट्जरलैंड की बैंकों में कालाधन के रूप में जमा करना एक मात्र कालेधन का उदाहरण नहीं है, बल्कि वह पैसा हमारे शेयर बाजार में इक्विटी और पी-नोट्स के जरिए अर्थव्यवस्था को खोखला बना रहा है। दरसल अर्थव्यवस्था में शेयर बाजार के जरिए काले धन को सफेद बनाने में जिस तरह के आर्थिक अपराध किए जाते हैं, वह बेहद जटिल और तकनीकि प्रवत्ति के होते है। आम भाषा में या आम आदमी इन अपराधों के मोडस आॅपरेंडी (अपराध करने का तरीका ) को समझ नहीं पाता और न ही इनके गंभीर परिणामों पर राष्ट्रव्यापी चिंता उभर पाती है।
हमारी सामान्य अपराध नियंत्रण एजेंसी भी ऐसे असामान्य और जटिल अपराधों का जल्द पदार्फाश भी नहीं कर पाती है। कालेधन के नाम पर सिर्फ यही समझा जाता है कि देश के पैसे को भारत से बाहर किसी दूसरे देश की बैंक में जमा करा देना, लेकिन जिस तरह से एसआईटी ने केमेन द्वीप से बड़ी संख्या में हमारे शेयर बाजार में होने वाले निवेश की तरफ चिंतापूर्ण नजरिए से सेबी को आगाह किया है, उससे स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कालेधन और कर चोरी जैसा आर्थिक अपराध न केवल कुछ देश के लोगों के द्वारा किया जा रहा है, बल्कि बड़ी संख्या में विदेशी निवेशक भी भारतीय पूंजी बाजार को बट्टा लगा रहे हैं। हमें समझना पड़ेगा कि आखिर कैसे पी- नोट्स और शेयर बाजार में अचानक सूचकांक में उछाल हमारी अर्थव्यवस्था के लिए घातक है और एक आर्थिक अपराध है।
दरअसल, मुद्रा बाजार और पूंजी बाजार हमारी अर्थव्यवस्था के दो पहलू हैं, मुद्रा बाजार में लघु समय के लिए पैसों का लेन-देन होता है और पूंजी बाजार में दीर्घ समय के लिए मौद्रिक उपकरण की खरीद-फरोख्त होती है। शेयर खरीदना ,म्यूचुअल फंड में पैसा लगाना। पी- नोट्स खरीदना आदि पूंजी बाजार के अंतर्गत आता है। हमारे देश में यदि आप शेयर बाजार में उतरना चाहते हैं तो आपको एक डीमेट एकाउंट खुलवाना होता है और आपके द्वारा शेयर बाजार में किए जा रहे खरीद-फरोख्त संबंधी गतिविधियों पर नियामक संस्था सेबी का नियंत्रण और निगरानी रहती है। भारतीय निवेशक के लिए जो नियम होते हैं, उससे कहीं अधिक प्रक्रियात्मक नियमन विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए होते हैं। यदि कोई विदेशी कंपनी भारतीय शेयर बाजार में पैसा लगाना चाहती है तो उसे बाकायदा सेबी में स्वयं को पंजीकृत कराना होता है, डीमेट खाता, पैन कार्ड, स्थानीय आॅफिस आदि प्रक्रियाएं पूरी करनी होती हैं।
इसके विपरीत यदि कोई विदेशी निवेशक भारत में संस्थागत निवेशक नहीं है तो वह पी-नोट्स (पार्टिसिपेटरी नोट्स ) के जरिए भारतीय शेयर बाजार में पैसा निवेश करता है। यह पी-नोट्स कोई विदेशी संस्थागत निवेशक ही अपने देश के किसी निवेशक को जारी करता है। पी-नोट्स की समस्या यह होती है कि इसमें पी-नोट्स के जरिए निवेशक की पहचान उजागर नहीं हो पाती है। एसआईटी ने जिस तरह से पी-नोट्स के जरिए भारत में हो रहे आर्थिक अपराध और कालेधन के प्रसार की ओर इशारा किया वह यही मुद्दा है। विदेशी निवेशक को जब एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) पी-नोट्स इशू करता है तो पी-नोट धारक उसी पी-नोट को किसी दूसरे विदेशी निवेशक को अधिक पैसे में बेचने का अधिकार रखता है और समस्या यहां यह है कि इस पी-नोट्स को बेचने पर जब धारक को आर्थिक लाभ होता है तो भारत सरकार को इसपर कैपिटल गेन टैक्स नहीं मिल पाता। इस तरह बड़े स्तर पर भारतीय पूंजी बाजार से प्राप्त होने वाली आय पर विदेशी निवेशक भारत सरकार को टैक्स देने से बच निकलते हैं। जिस तरह भारत से काला-धन देश के बाहर जाता है और पी-नोट्स के जरिए वापस देश की अर्थव्यवस्था में आ जाता है वह भी चिंताजनक है।
भारत में कालाधन रखने वाले लोग दरसल हवाला के जरिए पैसे को देश के बाहर भेजते हैं और पी-नोट्स के जरिए विदेशी निवेशक इस पैसे को हमारे शेयर बाजार में लगाते हैं और उस पर होने वाला लाभ कालाधन धारक को मिल जाता है। यानि पी-नोट्स काला धन पर भारतीय बाजार से ही लाभ देने का भी एक जरिया कभी-कभी बन जाता है। हालांकि सेबी पी-नोट्स के संबंध में विदेशी निवेशकों के ऊपर शिकंजा कस चुकी है लेकिन एसआईटी सेबी से और अधिक निगरनी की अपेक्षा करता है। इसके अतरिक्त एसआईटी की रिपोर्ट में एक और गंभीर चिंता व्यक्त की गई है जो कि हमारा ध्यान पूर्व में हुए केतन पारेख और हर्षद मेहता के घोटालों की तरफ लेकर जाता है। जिस तरह छोटे निवेशक और करदाताओं को बट्टा लगाकर देश की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई जा रही है, उससे एक तरह के वितीय साम्राज्यवाद और वित्तीय आतंकवाद जैसी चिंताएं अधिक मजबूत होती हैं। ये इसलिए भी अधिक चिंता का विषय है, क्योंकि इन पर आम जानकारी नहीं होती जब तक इन अपराधों का पदार्फाश होता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है।