एक गांव के बाहर एक सांप आसपास से गुजरने वाले कई लोगों को काट चुका था। एक दिन एक महात्मा उस गांव में रुके। गांव वालों ने उन्हें विषैले सांप के बारे में बताया। इस पर महात्मा सांप से मिलने चल दिए। महात्मा ने समझाया कि उसे इस तरह लोगों को बिना बात नहीं काटना चाहिए। हिंसा से मन अशांत रहता है, इसलिए उसे हिंसा छोड़ देनी चाहिए। सांप ने हिंसा छोड़ दी। गांव वालों को जब पता चला कि सांप अब किसी को नहीं काटता तो कई बच्चे उसे परेशान करने लगे। वे उस पर पत्थर बरसाने लगते। कुछ ही दिनों में सांप अधमरा हो गया। संयोग से वही महात्मा गांव आए। उन्होंने सांप की दुर्दशा का कारण पूछा। सांप ने बताया कि उसने हिंसा छोड़ दी थी, पर अब लोग उसे जब-तब मारने लगे हैं। सांप की बात सुनकर महात्मा ने उसे फटकार लगाते कहा- अरे मूर्ख, मैंने तुझे हिंसा छोड़ने को कहा था, पर यह कभी नहीं कहा कि तुम अपनी रक्षा भी न करो। याद रखो, अत्याचार सहना जहां एक पाप है, वहीं स्वरक्षा भी हर प्राणी का धर्म है। इस पर सांप को अपनी भूल का अहसास हो गया।