16 Apr 2024, 14:48:26 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

एक मूर्तिकार उच्चकोटि की ऐसी सजीव मूर्तियां बनाता था, जो सजीव लगती थीं। लेकिन उस मूर्तिकार को अपनी कला पर बड़ा घमंड था। उसे जब लगा कि जल्दी ही उसकी मृत्यु होने वाली है तो वह परेशानी में पड़ गया। यमदूतों को भ्रमित करने के लिए उसने एकदम अपने जैसी दस मूर्तियां बना डालीं और वह उनके बीच में बैठ गया। यमदूत जब उसे लेने आए तो एक जैसी ग्यारह आकृतियां देखकर स्तम्भित रह गए।

इनमें से वास्तविक मनुष्य कौन है- नहीं पहचान पाए। वे सोचने लगे, अब क्या किया जाए। मूर्तिकार के प्राण अगर न ले सके तो सृष्टि का नियम टूट जाएगा और सत्य परखने के लिए मूर्तियां तोड़ें तो कला का अपमान होगा। अचानक एक यमदूत को मानव स्वभाव के सबसे बड़े दुर्गुण अहंकार की स्मृति आई।

उसने चाल चलते हुए कहा- काश इन मूर्तियों को बनाने वाला मिलता तो मैं से बताता कि मूर्तियां तो अति सुंदर बनाई हैं, लेकिन इनको बनाने में एक त्रुटि रह गई। यह सुनकर मूर्तिकार का अहंकार जाग उठा कि मेरी कला में कमी कैसे रह सकती है? वह बोल उठा- कैसी त्रुटि? झट से यमदूत ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला, बस यही त्रुटि कर गए तुम अपने अहंकार में। क्या जानते नहीं कि बेजान मूर्तियां बोला नहीं करतीं।

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