एक बात साबरमती आश्रम में गांधीजी के प्रवास के दिनों की है। एक दिन एक गांव के कुछ लोग बापू के पास आए और उनसे कहने लगे, बापू कल हमारे गांव में एक सभा हो रही है, यदि आप समय निकाल कर देश की स्थिति व स्वाधीनता के प्रति कुछ कहें तो आपकी कृपा होगी। गांधीजी ने मुखिया से पूछा, सभा के कार्यक्रम का समय कब है? मुखिया ने कहा, हमने चार बजे निश्चित कर रखा है।
मुखिया बोला, बापू मैं गाड़ी से एक व्यक्ति को भेज दूंगा, जो आपको ले आएगा। अगले दिन जब पौने चार बजे तक मुखिया का आदमी नहीं पहुंचा तो गांधीजी चिंतित हो गए। उन्होंने सोचा अगर मैं समय से नहीं पहुंचा तो लोग क्या कहेंगे। गांधीजी ने एक तरीका सोचा और उसी के अनुसार अमल किया। कुछ समय पश्चात मुखिया गांधीजी को लेने आश्रम पहुंचा तो गांधीजी को वहां नहीं पाकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ।
मुखिया सभास्थल पर पहुंचा तो उन्हें यह देख कर और अधिक आश्चर्य हुआ कि गांधीजी भाषण दे रहे हैं। भाषण के उपरांत मुखिया ने गांधीजी से पूछा, मैं आपको लेने आश्रम गया था लेकिन आप वहां नहीं मिले फिर आप यहां तक कैसे पहुंचे? गांधीजी ने कहा, जब आप पौने चार बजे तक नहीं पहुंचे तो मुझे चिंता हुई कि मेरे कारण इतने लोगों का समय नष्ट हो सकता है इसलिए मैंने साइकिल उठाई और तेजी से चलाते हुए यहां पहुंचा। मुखिया बहुत शर्मिंदा हुआ। गांधीजी ने कहा, समय बहुत मूल्यवान होता है।