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FathersDay: मां ने पिता बनकर पाला... संकट में परिवार संभाला

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 18 2017 11:07AM | Updated Date: Jun 18 2017 11:07AM
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इंदौर। पैरेंट्स के लिए बच्चे एक हों या एक से ज्यादा.... सभी एक समान होते हैं, उनकी यही तमन्ना होती है कि जो खुशियां, सुख-सुविधाएं और संसाधन हमें नहीं मिले वह हमारे बच्चों को जरूर मिलें, भले ही उसके लिए हमें कितने ही जतन-मेहनत क्यूं न करना पडे। घर का मुखिया कहलाने वाला एक पिता बच्चों को पढ़ाने, बेहतर सुविधाओं के साथ काबिल बनाने के लिए क्या नहीं करता, जब वो मेहनत बच्चों के सफल होने पर साकार होती है तो पिता के चेहरे पर खुशी की चमक नजर आती है। दंगल की गीता-बबीता की कहानी को तो हर किसी ने देखा और सराहा भी, लेकिन शहर में ऐसे भी पिता हैं जिनकी बेटियां गीता, बबीता से कम नहीं। फादर्स डे पर दबंग दुनिया ने शहर के कुछ ऐसे होनहार राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों से चर्चा कि जिनके पिता की हर सुबह उनके बच्चों के सपने को सच करने के लिए होती है। 

पापा का डेडिकेशन देता है ऊर्जा
एनडीपीएस स्कूल की स्पोर्ट्स कैप्टन संजीवनी मराठे पांच बार स्टेट चैंपियन रहने के साथ नेशनल बैडमिंटन भी खेल चुकी हैं। उनके घर का एक शो केस मेडल और ट्रॉफियों से भरा हुआ है। उन्हें दिल्ली में एनसीसी कैंप में सिल्वर मेडल मिला है। वे इंदौर की अकेली लड़की थीं जिसका सिलेक्शन दिल्ली के एनसीसी कैंप में हुआ था। वे रोज सुबह 5.30 बजे अपने पिता जयदीप मराठे के साथ दशहरा मैदान पर फिटनेस के लिए रनिंग और एक्सरसाइज करने जाती हैं। जब बाहर नहीं जाते तो दोनों साथ ही मिलकर घर की छत पर एक्सरसाइज करते हैं। संजीवनी का कहना है हर दिन सुबह पापा का मेरे लिए इतना डेडिकेशन देखकर मेरे अंदर ऊर्जा आ जाती है। मेरे पिता की कार की वर्कशॉप है। वे बहुत व्यस्त रहते है, लेकिन जब भी इंदौर या बाहर मेरा कोई टूर्नामेंट होता है, तो वे अपना सारा काम छोड़कर मेरे साथ जाते हैं। मिडिल क्लास फैमिली के लिए बैडमिंटन गेम अफोर्डेबल नहीं है, क्योंकि उसके रैकेट से लेकर किट तक बहुत एक्सपेंसिव होती है। महंगे शूज, रैकेट, कोचिंग और ऑल इंडिया टूर्नामेंट में मेरी हर रिक्वायरमेंट पूरी की। बैडमिंटन की स्पेशल ट्रेनिंग के लिए बेंगलुरु भी गई। वहां मैंने साइना नेहवाल के कोच विमल कुमार के ब्रदर से ट्रेनिंग ली। अब मेरा सपना है मेरे पापा की मेहनत को इंडिया लेवल तक दिखा पाऊं। मुझे इंदौर में कई लोग छोटी सानिया नेहवाल कहते है, क्योंकि हम दोनों का फेसकट मैच करता है। मेरी आइडल सानिया नेहवाल और पीवी सिंधु हैं। मेरे लिए पापा एक दोस्त से बढ़कर हैं। मैं उनसे हर वो बात कह सकती हूं जो किसी से नहीं कह सकती। 

पिता के बिजनेस को ही आगे बढ़ाना है
गगन पाटीदार ने यूनिवर्सिटी ऑफ सुंदरलैंड यूके से बीए ऑनर्स किया और एजुकेशन पूरी होते ही अपने देश वापस आ गए। उनका उद्देश्य अपने पिता के बिजनेस को आगे बढ़ाना था। खजराना स्थित गगन लेदर शॉप है, जिसे शहरभर के लोग जानते है। गगन व उनके पिता मुकेश पाटीदार दोनों ही कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं। वे अपनी पढ़ाई के साथ पार्ट-टाइम जॉब करते रहे ताकि पिता से खर्च के लिए पैसे न मांगना पड़ें। उन्हें यूके में 25 लाख का पैकेज भी मिला फिर भी उन्होंने वहां काम नहीं किया। उनका कहना है यूके में पढ़ाई का एक ही उद्देश्य रहा है वहां के वातावरण को समझना। उन्होंने पिता को अपना आदर्श माना और उनके बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए अपने वतन लौट आए। 

पिता को अकेले किसानी करते देख छोड़ा पैकेज 
एलएनसीटी भोपाल से इंजीनियरिंग, मनीपाल से एमबीए की पढ़ाई करने के बाद बेंगलुरू  में 12 लाख रुपए के पैकेज पर जॉब मिला। अप्रैल 2017 को लाखों का पैकेज छोड़ पिता के साथ किसान बन गए। ये हैं हाटपीपल्या गांव के राघव बल्दवा। राघव का मानना है कि हमारे शरीर के लिए जैविक खेती से उत्पन्न सब्जी, फल, अनाज आज के समय में जरूरी हंै। जिस तरह सब्जियों, फलों व अनाजों में केमिकल कीटनाशक का उपयोग हो रहा है इससे खेती और हमारा शरीर दोनों ही कमजोर हो रहे है, इसलिए पिता और मैंने जैविक खेती करने का निर्णय लिया। पिता किसानी लेबर देखते हैं और मैं मार्केटिंग।  यही नहीं पिता शिवरत्न 80 बार ब्लड डोनेट कर चुके हैं, उन्हें देखकर बेटे ने रक्तदान की मुहिम साल 2012 में ‘ब्लड डोनर फॉर इंदौर’नाम से शुरू की। इसके तहत वे अब तक 19 राज्यों के 121 शहरों में 80 हजार लोगों को जोड़ चुके हैं। 

नहीं खिलाते मसाले वाला खाना
चाय की दुकान चलाने वाले प्रकाश आनिया की दो बेटियां हैं गणेशी और वैशाली। पिता ने कहा मेरा जीवन चाय की दुकान पर बीत गया, लेकिन तुम वो करोगी जो मैं करने का सोच भी नहीं सकता था। तुम्हें मेरे लिए नहीं देश और प्रदेश के लिए मेडल लाना हैं। गणेशी और वैशाली ने बताया वे रोज सुबह अपने पिता की एक आवाज पर उठती हैं। सुबह 5.30 बजे गांधी हॉल के लिए पिता के साथ निकल पड़ती हैं, वहां रोज पापा हमें खूब दौड़ाते हैं। मसाले वाला खाना खाने से मना करते है और खूब काजू-बादाम खिलाते हैं, लेकिन हमारे पिता कभी खुद एक भी ड्रायफ्रूट नहीं खाते, पहले हम समझ नहीं पाते थे, लेकिन आज हम समझते है कि उनकी ये दिन-रात की मेहनत हमारे लिए है और इसके  पीछे उनका सपना है कि मेरी बेटियां गोल्ड लेकर आएं। हमारे पापा हमारा अभिमान हैं, उन्होंने हमें कभी बेटा ना होने की मायूसी नहीं जताई। 

पापा के मार्गदर्शन से ही मिली हमें मंजिल
हमारे पिता ने अपनी बेटियों के लिए वो सपना देखा जो पूरा परिवार नहीं सोच सकता था। यह कहना है आट्या-पाट्या की सीनियर नेशनल प्लेयर प्रियांशी राय का। प्रियांशी के पिता जगदीश राय किराने की दुकान चलाते हैं और उनकी बहन सब जूनियर नेशनल आट्या-पाट्या प्लेयर हैं। प्रियांशी कहती हैं मेरे पिता का सपना था कि मुझे ऐसी जिंदगी मिलना चाहिए कि पूरा समाज देखता रह जाए। उनके इस सपने को हमने अपना मकसद माना और आज उनके ही मार्गदर्शन से हमें मंजिल मिली है। प्रियांशी और सेजल दोनों अपने पिता के साथ सुबह 6 बजे चिमनबाग मैदान में वार्मअप, फिटनेस करती हैं। वे बताती है एक समय ऐसा था जब हमें खिलाड़ी बनाने को लेकर बुजुर्गों और समाज दोनों का विरोध था, लेकिन पापा ने उनसे किनारा करना चाहा ताकी हम कुछ बन सकें। प्रियांशी और सेजल नेशनल टूर्नामेंट्स में गोल्ड, ब्रांज, सिल्वर सहित दस मेडल अपने पापा को डेडिकेट कर चुकी हैं। 

जैसा सर कहें वैसा ही करना
भगवान कुछ लेता है तो देर से ही सही पर उससे कुछ बेहतर देता है, लेकिन गॉड का साइन मेरी लाइफ में इस तरह से मिलेगा सोचा नहीं था। यह कहना है शहर की इंटरनेशनल डायविंग स्वीमर तितिशा मराठे का। वे बताती हंै तीन साल पहले मैं अपने पापा के साथ पहली बार नेहरू पार्क  में स्वीमिंग कॉम्पटिशन की तैयारी के लिए आई थी। तब रमेश सर ने पापा को कहा था डायविंग सीखने के लिए ये बेस्ट कैंडिडेट है। पापा ने हां, कह दिया और कहा जैसा सर कहें वैसा ही सीखना और मेडल लाने की हर मुमकिन कोशिश करना। 15 दिन बाद पापा की अचानक मौत हो गई, लेकिन पापा के वो शब्द आज भी मुझे याद हैं, जैसा सर कहें वैसा ही करना। तबसे मुझे मेरे कोच ने एक फादर की तरह मार्गदर्शन दिया, वे प्यार और फटकार दोनों से ही मुझे आगे बढ़ने और मेहनत करने के लिए प्रेरित करते हैं। आज तीन साल हो गए पापा को गए, लेकिन ऐसा लगता है जैसे वो खुद मुझे इनके हाथों में सौंपकर गए थे। मेरे फादर भले ही मुझे छोड़ गए हों, लेकिन उनकी कमी सर ने कभी महसूस नहीं होने दी। भले ही खून का रिश्ता न हो, लेकिन ये मेरे गॉड फादर जरूर हैं। 

परिवार से बड़ी कोई पूंजी नहीं 
सन् 2000 में एमएससी केमिस्ट्री की पढ़ाई पूरी होते ही बड़ोदा की निजी कंपनी ने एक बड़े पैकेज का आॅफर दिया। ज्वाइनिंग करना ही था कि दिमाग में पापा के शब्द गूंजे, घर-परिवार से बड़ी कोई पूंजी नहीं होती। कंपनी ज्वॉइन नहीं की और लौट आए अपने घर। ये कहानी है कालानी नगर निवासी रूपेण जोशी की, जिनके पिता जगदीशचंद्र जोशी सरकारी स्कूल के सेवानिवृत्त हेडमास्टर हैं। रूपेण ने बताया हर जन्मदिन पर पापा सुबह उठकर कपड़ों पर पे्रस करना, जूतों पर पॉलिस करना, पहली सुबह पोहा-जलेबी लाकर रखना, ये सब करने के बाद हमें उठाते हैं। एक बड़ा पैकेज इन कीमती पलों के आगे कुछ नहीं है। 
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