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Lifestyle

बच्चों का नींद में बिस्तर गीला करना आम समस्या है

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 16 2016 11:14AM | Updated Date: Jun 16 2016 11:14AM
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‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात‘ यह कहावत जीवन में मानसिक स्वास्थ्य की उपयोगिता को ध्यान में रखकर ही बनाई गई है। बाल मनोविज्ञान के अनुसार शुरू के पांच सालों में यह तय हो जाता है कि बच्चा आगे चलकर मानसिक रूप से कितना स्वस्थ व्यक्ति बनेगा। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, बच्चे अपने मानसिक स्तर के आधार पर सोचते हैं, अनुभव तथा व्यवहार करते हैं, बच्चों की सोच उनका अनुभव तथा व्यवहार कैसा होगा यह उनकी उम्र, बुद्धि और सामाजिक माहौल पर निर्भर करता है।

बहुत सी मानसिक बीमारियां किशोरावस्था या प्रौढ़ावस्था में उभरती हैं पर उनके आधार पर व्यक्तित्व निर्माण बचपन में ही अपराधी वृत्तियों और आदतों के रूप में हो चुका होता है।

बच्चों द्वारा बिस्तर गीला करना एक बहुत ही आम समस्या है। प्रायः बच्चा तीन वर्ष की आयु तक अपने मूत्राशय पर काबू पा लेता है। अतः यदि तीन वर्ष से अधिक आयु का बच्चा बिस्तर गीला करता है तो ही इसे असामान्य मानना चाहिए। बिस्तर गीला करने के दो कारण हो सकते हैं। एक तो यह कि शुरू-शुरू में बच्चा पेशाब करने में काबू नहीं रख पाता और दूसरा यह कि मूत्राशय पर नियंत्रण होने के बावजूद किसी भावनात्मक परेशानी के कारण बिस्तर गीला करना। मूत्राशय पर नियंत्रण न होने के भिन्न-भिन्न कारण हो सकते हैं।
 
कुछ बच्चों में नाड़ी तंत्र में खराबी होने के कारण वे मूत्राशय पर नियंत्रण नहीं रख पाते। कुछ बच्चे किसी मनोवैज्ञानिक बीमारी से पीड़ित होने के कारण मूत्राशय पर नियंत्रण नहीं रख पाते। ऐसा पांच से आठ वर्ष की आयु में बीच होता है। मनोवैज्ञानिक तनाव या भावनात्मक गड़बड़ी के भी कई कारण हो सकते हैं जैसे छोटे भाई या बहन का पैदा होना या किसी प्रियजन की हानि होना आदि।
 
लड़कियों की तुलना में लड़कों में यह समस्या ज्यादा पाई जाती है। परिवार के एक से ज्यादा बच्चों में भी यह समस्या पाई जा सकती है। हां, प्रत्येक बच्चे की समस्या की गंभीरता में फर्क होता है। ऐसा हो सकता है कि कोई बच्चा हमेशा रात में बिस्तर गीला करता हो जबकि दूसरा बच्चा केवल सप्ताह या महीने में दो-तीन बार ही ऐसा करता हो।
 
इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए अभिभावक प्रायः बच्चों को सजा देते या उनका दूसरे बच्चों के सामने मजाक बनाते हैं। ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए इससे समस्या और जटिल हो सकती है। आधुनिक मनोचिकित्सा में इस बीमारी पर काबू पाने का कारगर उपाय है। मनोचिकित्सक बच्चे की मानसिक समस्या को समझकर उसका निदान कर सकता है।
 
स्कूल फोबिया एक अन्य मानसिक बीमारी है जिससे अभिभावक अक्सर परेशान रहते हैं। स्कूल फोबिया से पीडि़त बच्चा स्कूल जाने से मना करता है। वह रोज बहाने बनाता है। इस समस्या का एक कारण माता-पिता या परिवार के किसी अन्य सदस्य का अत्यधिक लाड-प्यार होता है जिससे बच्चा उनसे कुछ घंटों के लिए भी अलग नहीं होना चाहता।
 
कुछ अन्य मामलों में बच्चे पढ़ाई में कमजोर होते हैं तथा स्कूल में अध्यापक की मार तथा अन्य साथियों द्वारा मजाक उड़ाए जाने से बचने के लिए स्कूल जाने से डरते हैं। स्कूल फोबिया दूर करने लिए मनोचिकित्सक को बच्चे के अभिभावकों के साथ-साथ स्कूल के अध्यापकों तथा बच्चे के सहपाठियों के सहयोग की आवश्यकता भी होती है।
 
अति सक्रियता एक अन्य मानसिक दोष है जोकि लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक पाया जाता है। जो बच्चे अत्यधिक सक्रिय होते हैं वे आराम नहीं करते जिससे उनकी एकाग्रता और सावधानी में कमी आती है। ये हाइपर एक्टिव बच्चे प्राय: उग्र स्वभाव के होते हैं, अक्सर पढ़ाई में वे पिछड़ जाते हैं। ज्यादातर हाइपर एक्टिव बच्चों की स्मरण शक्ति कमजोर होती है, कुछ को मिर्गी के दौरे भी आते हैं। विभिन्न मानसिक तथा सामाजिक तत्व इसके कारण होते हैं।
 
बच्चों की विभिन्न व्यवहारिक परेशानियां यह जरूरी नहीं कि असाधारण ही हों। कभी-कभी साधारण बच्चे भी बिस्तर गीला कर सकते हैं, स्कूल जाने से कतराते हैं तथा अत्यधिक सक्रिय हो सकते हैं। परन्तु बच्चों में इस प्रकार का व्यवहार बहुत दृढ़ता से होने लगे और बार-बार होने लगे तो समझना चाहिए कि बच्चे की मानसिक व्याधि से निपटने का सबसे सरल उपाय है तुरन्त किसी अच्छे मनोचिकित्सक से सलाह लेना।
 
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