आजकल हम जितने आधुनिक हो रहे है, हमारे नैतिक मूल्य उतने ही गिरते जा रहे हैं। रिश्तों में व्यवहारिकता की जो लहर चली है, उसने कई रिश्तों पर बुरा असर डाला है। अब रिश्ते दिलों के नहीं, सिर्फ लाभ-हानि के रह गए हैं। हम जितने प्रोफेशनल हुए हैं, उतना ही परिवार और रिश्तों में तालमेल बिगड़ा है।
हमारी इस आधुनिकता की कीमत संभवत: हमारे परिवार ने भी चुकाई है। सभी रिश्तों में पवित्रता है जरूरी हम दुनिया से जितने मतलब के रिश्ते रखते हैं, उसका सीधा प्रभाव हमारे परिवार पर भी पड़ता है। रिश्तों में व्यवहारिकता आई तो पवित्रता खत्म हो गई। जबकि रिश्तों में पवित्रता ज्यादा जरूरी है।
भगवान से भी मनोकामनाओं में सिर्फ आदान-प्रदान की ही बात करते हैं। कई बार तो उसे भी धोखा देने में पीछे नहीं रहते हैं। हमारे द्वारा किसी रिश्ते में पार की गई मयार्दा हमें कब और कैसे प्रभावित करेगी, ये कोई नहीं जानता। रिश्ता कोई भी हो, उसमें पवित्रता जरूर रखें। इससे परिवार भी सुखी रहेगा।
तब शुरू हो जाती है रिश्तों में गड़बड़ हम जिस तरह से रिश्ते निभाते हैं, वैसे ही रिश्ते बाहरी लोग भी निभाने लगते हैं और यहीं से गड़बड़ शुरू हो जाती है। भगवान से हमारा रिश्ता कैसे हो यह सवाल हर भक्त के मन में आता रहता है। श्रीकृष्ण अवतार में सुदामा प्रसंग इस प्रश्र का उत्तर देता है।
श्रीकृष्ण ने ऐसे बदल दिया सुदामा का जीवन सांदीपनि आश्रम में बचपन में श्रीकृष्ण-सुदामा साथ पढ़े थे। बाद में श्रीकृष्ण राजमहल में पहुंच गए और सुदामा गरीब ही रह गए। सुदामा की पत्नी ने दबाव बनाया और सुदामा श्रीकृष्ण से कुछ सहायता लेने के लिहाज से द्वारिका आए।
एक मित्र दूसरे मित्र से कैसे व्यवहार करे, इसका आदर्श प्रस्तुत किया श्रीकृष्ण ने। खूब सम्मान दिया सुदामा को, लेकिन विदा करते समय खाली हाथ भेज दिया। वह तो बाद में अपने गांव जाकर सुदामा को पता लगा श्रीकृष्ण ने उनकी सारी दुनिया ही बदल दी। भगवान के लेने और देने के अपने अलग ही तरीके होते हैं। बस हमें इन्हें समझना पड़ता है।
वह दिखाकर नहीं देता पर खुलकर देता है। इस प्रसंग का खास पहलू यह है कि सुदामा ने पूछा था श्रीकृष्ण मैं गरीब क्यों रह गया। आपका भक्त होकर भी श्रीकृष्ण बोले थे बचपन की याद करो, गुरु माता ने एक बार तुम्हें चने दिए थे कि जब जंगल में लकड़ी लेने जाओ तो कृष्ण के साथ बांटकर खा लेना। तुमने वो चने अकेले खा लिए, मेरे हिस्से के भी। जब मैंने पूछा था तो तुम्हारा जवाब था, कुछ खा नहीं रहा हूं, बस ठंड से दांत बज रहे हैं। भगवान की घोषणा है जो मेरे हिस्से का खाता है और मुझसे झूठ बोलता है उसे दरिद्र होना पड़ेगा।