दोस्तों, आपने मैदानों, बाग-बगीचों अथवा पेड़-पौधों, पत्तियों पर एक गोल घुमावदार खोल में एक ऐसे नन्हे जानवर को देखा होगा जो हाथ लगाते ही अपने खोल के भीतर छुप जाता है और जब आसपास कोई आहट नहीं पाता तो वापस खोल से बाहर निकलकर बेहद धीमी गति से अपनी राह चल पड़ता है।
यह जानवर कोई और नहीं बल्कि घोंघा है जिसकी धीमी गति को लेकर कई मुहावरे भी बन चुके हैं। घोंघा एक तरह का कीड़ा है जिसे मॉलस्क कहते हैं। शारीरिक रूप से तो घोंघा बहुत ही नाजुक प्राणी है किन्तु यदि इसके दांतों की बात करें तो दांतों के मामले में यह बहुत ही मजबूत है। इसके दांतों की मजबूती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह अपने दांतों से कठोर पत्थरों को भी कुरद सकता है।
घोंघे के दांतों की मजबूती तो हैरान करने वाली है ही साथ ही इसके दांतों की संख्या भी कम आश्चर्यचकित करने वाली नहीं है, इस छोटे से जीव के पास दो या चार नहीं बल्कि 14,000 दांत होते हैं। घोंघों में दांतों की मजबूती को लेकर किए गए परीक्षणों में ब्रिटेन के इंजीनियरों ने घोंघे के दांतों को सबसे मजबूत जैविक पदार्थ से बना पाया।
रॉयल सोसायटीज जर्नल इंटरफेस में प्रकाशित इस रिसर्च के मुताबिक शोधकतार्ओं का कहना है कि घोंघे के दांत बहुत ही पतले खनिज फाइबर्स तथा प्रोटीन के मिश्रण से बने होते हैं, जो मकड़़ी के जाल से भी ज्यादा मजबूत होते हैं, इसके दांतों की मजबूती के आगे मानव द्वारा निर्मित मजबूत पदार्थ भी कमजोर हो जाते हैं।