29 Mar 2024, 14:51:32 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

इतिहासकार गुप्तकाल तीसरी शताब्दी से छठी शताब्दी के मध्य को भारत का स्वर्णयुग मानते हैं। इस काल के वैभव का प्रत्यक्षदर्शी रहा है दिल्ली का लौह स्तंभ। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल में बना यह स्तंभ खुले आकाश में 1600 वर्षों र्से मौसम को चुनौती देता आ रहा है और धातु विज्ञान में हमारी उत्कृष्टता का ठोस प्रमाण हैं।
 
 
आश्चर्य की बात है कि अब तक इसमें जंग नहीं लग रही। इसका कारण जानने के लिए वैज्ञानिक अभी भी जुटे हुए हैं। भारत में लोहे से संबंधित धातु कर्म की जानकारी करीब 250 ई .पू .से ही थी। बारहवीं शताब्दी के अरबी विद्वान इदरिसी ने लिखा है कि भारतीय सदा ही लोहे के निर्माण में सर्वोत्कृष्ट रहा और उनके द्वारा स्थापित मानकों की बराबरी कर पाना असंभव सा है। पश्चिमी देश इस ज्ञान में 1000 से भी अधिक वर्ष पीछे रहे। इंग्लैंड में लोहे की ढलाई का पहला कारखाना सन 1161 में ही खुल सका। वैसे चीनी लोग इसमें भारतीयों से भी 200 से 300 साल आगे थे, पर लौह स्तंभ जैसा चमत्कार वे भी नहीं कर पाए।
 
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