क्लब में गप प्रतियोगिता हो रही थी और सब एक दुसरे से बढ़-चढ़कर कर गप्पे ठोक रहे थे। केवल विजय ही चुप बैठा था।
तुम चुप कैसे बैठे हो? क्या तुम गप्प नहीं जानते ? रमेश ने टोका
भाई मैं झूठी बात कभी नहीं कहता, सच्चा किस्सा कहो तो सुना सकता हूं।
अच्छा सच्चा किस्सा ही सुनाओ। कई आवाजे आई। तुम सब जानते है की मुझे घुमने का कितना शौक है। पिछले साल में मध्य प्रदेश गया था। वहां के एक इलाके में इतने पत्थर तथा दरारें थी की वहां रहने वाले लोग- गार्ड पहनकर चलते थे?
फिर किसी इलाके में तरबूज होते थे। और तरबूज भी इतने बड़े की क्या कहने। सौ डेढ़ सौ किलोग्राम के तरबूज तो मामूली बात थी। सौ किलो के तरबूज तो वहां की दरारों को भरने के लिए फेंक दिए जाते थे। एक बार वहां मकानों का अकाल पड़ा तो कई परिवारों ने आधे- आधे तरबूज में अपना घर बसा लिया- बीज निकालकर नहीं तो चोट लगने का डर रहता था।
और एक बार वहां भीषण सूखा पड़ा। एक बूंद पानी मिलना दुभर हो गया। तब वहां पानी की कंपनियों ने बाराह दिनों तक दो बडेÞ तरबूजों से काम चलाया था।