28 Mar 2024, 16:00:40 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

इंदौर। भगवान राधा मदन मोहन की पूजा और भक्ति के नाम पर इस्कॉन के भक्ति चारू स्वामी ने जिस आईटी पार्क की जमीन घोटाले को अंजाम दिया है उसे लेकर 2009 से ही उज्जैन विकास प्राधिकरण (यूडीए) का रवैया सुस्त है। प्रशासनिक परिसर में लीज शर्तों के विपरीत मंदिर बनाकर बैठे इस्कॉन प्रमुख को यूडीए एक के बाद एक जमीन देता रहा। अब जब हाई कोर्ट और मप्र शासन द्वारा मंदिर की लीज निरस्त की जा चुकी है तो सवाल यह उठता है कि आखिर आईटी पार्क वाली जमीन के लिए यूडीए हाथ बांधे क्यों बैठा है। 
 
भक्ति की आड़ में जमीनी जालसाजी को अंजाम देते आ रहे इस्कॉन के भूमि भक्तों ने कैसे आईटी पार्क के नाम पर उज्जैन के सबसे बड़े घोटाले को अंजाम दिया? इसका खुलासा दबंग दुनिया द्वारा लगातार प्रकाशित समाचारों में किया गया। फिर भी अब तक यूडीए अध्यक्ष या अधिकारियों ने आईटी पार्क के लिए इस्कॉन और यूडीए के बीच साइन हुई लीज डीड को उठाकर तक नहीं देखा। 
 
वह भी तब जब दबंग दुनिया इस बात का भी खुलासा कर चुका है कि आईटी पार्क बनाने के लिए जमीन लेने वाली वराह मिहिर इन्फोडंमिन प्रालि कंपनी के साथ ही जमीन का सौदा भी इंदौर के महादी समूह को कर चुका है। 
 
भक्ति का प्रभाव या महादी का : बताया जा रहा है कि भक्ति चारू स्वामी के राजनीतिक प्रभाव और शिव सरकार में मजबूत पकड़ के कारण यूडीए न इस्कॉन की जमीन का कब्जा ले पा रहा है। न आईटी पार्क की जमीन की लीज को लेकर कोई मजबूत निर्णय ले पाया। इधर, वराह मिहिर और उसकी जमीन खरीदने वाली महादी समूह का प्रभाव भी अच्छा है। इस कंपनी में इंदौर से लेकर दिल्ली तक के नेताओं, अधिकारियों और जजों का कमाया हुआ काला धन भी लगा हुआ है। कंपनी के सर्वेसर्वा शरद जैन और राजेंद्र राका है। 
 
कार्रवाई के लिए किस बात का इंतजार है
जब लीज शर्तों के उल्लंघन, लोकायुक्त जांच का हवाला और हाई कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों का हवाला देते हुए बीते दिनों आवास एवं पर्यावरण प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव ने इस्कॉन को 2004 में दिए गए प्लॉट नंबर 33, 34, 35, 36 और 37 की लीज निरस्त कर दी। 
इससे ज्यादा पेचिदा मामला है प्लॉट नंबर 43 का जिसे आईटी पार्क डेवलप करने के नाम पर यूडीए से इस्कॉन की वराह मिहिर ने 2005 में 30 साल की लीज पर लिया था। कायदे से जमीन पर आईटी पार्क तीन साल में बनना था लेकिन प्राधिकरण ने कब्जा दिया 2008 में। 8 सितंबर 2008 को टीएंडसीपी ने लेआउट अप्रूव किया जिसकी तीन साल की वैधता खत्म हुए भी छह साल हो चुके हैं। अब भी यूडीए का रवैया जमीन को लेकर सुस्त है। 
 
शर्तें भी ऐसी तय की जिसका फायदा मिला भक्ति को 
यूडीए और वराह मिहिर के बीच 2008 में साइन हुए लीज एग्रीमेंट में शर्त क्रमांक 11 और 13 भक्ति चारू की भक्ति से प्रेरित होकर तय की गई। इनमें आईटी पार्क के साथ कंपनी रेस्टोरेंट भी बनाने की हरी झंडी देने के साथ ही यूडीए ने स्पष्ट कर दिया था कि कंपनी आईटी पार्क बनाने या आईटी पार्क का विस्तार करने के लिए किसी भी वित्तीय संस्था, बैंक या विभाग से कर्ज ले सकती है। यदि कर्ज नहीं चुकाया जाता है तो बैंक, संस्था या विभाग जमीन का कब्जा लेते हैं तो जमीन नीलाम करने से पहले बस यूडीए के ध्यान में लाना होगा। नीलामी के बाद नामांतरण शुल्क यूडीए में जमा करना होगा। 

बहानेबाजी में अटका यूडीए
यूडीए मानता है कि वराह मिहिर ने शर्तों का उल्लंघन किया और आईटी पार्क का काम तक शुरू नहीं किया। फिर भी जिम्मेदार यह कहते हुए टालते रहे कि 2011-12 से जमीन पर बैंक का कब्जा है। इसीलिए लीज निरस्त नहीं की, क्योंकि इससे बैंक का पैसा अटक जाता। कुछ समय पहले बैंक कर्ज चुकाया गया है पर अब तक कागज रिलीज नहीं हुए हैं। 
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