देवास। पंडित कुमार गंधर्व की बेटी और शिष्या कलापिनी कोमकली ने दबंग न्यूज़ से विशेष बातचीत में उनसे जुड़ी कई बातें बताईं। उन्होंने कहा पंडित कुमार गंधर्व का जीवन संगीत देखा जाए तो जो उन्होंने तय किया वो उन्होंने करके दिखाया। उनकी तराने की एक महफिल पूरी करने की इच्छा थी, जो अधूरी रही। जब वे दिवंगत हुए तो उनकी बंदिशों की एक पुस्तक का काम अधूरा रहा था। माता वसुंधरा कोमकली ने उनकी इस इच्छा की पूर्ति सबसे पहले की। यह बात कलापिनी कोमकली ने दबंग न्यूज की टीम से विशेष बातचीत में कही।
देश में शास्त्रीय संगीत के दिग्गज पंडित कुमार गंधर्व ने अपने सहज संगीत जीवन में वह सब किया, जो वे करना चाहते थे। अपने आप में संगीत का विश्वविद्यालय थे पंडित कुमार गंधर्व। उन्होंने कई रागों, बंदिशों की रचना की। जानकार तो यह भी बताते हैं कि कबीर के निर्गुण स्वरूप के जो गीत उन्होंने संगीतबद्ध किए, उस प्रकार कोई भी नहीं कर पाया। फिर भी कुछ ऐसा था, जो पंडित जी करने की चाहत रखते थे और उनके रहते यह नहीं हो पाया। कुछ ऐसा भी छूट गया, जो उनसे उनके शिष्य सीखना और समझना चाहते थे।
शास्त्रीय संगीत के महान नाम पद्मभुषण से सम्मानित पंडित कुमार गंधर्व की 12 जनवरी को पुण्यतिथि है। 1992 में इसी दिन वे अपनी अद्भुत संगीत यात्रा को विराम देकर अनंत की ओर कूच कर गए थे। उनकी पुण्यतिथि पर देवास में उनके निवास भानुकुल पर दबंग न्यूज की टीम ने उनकी बेटी कलापिनी कोमकली से विशेष बातचीत की। कलापिनी कोमकली ने बताया पंडित जी से तो कई बातें सीखनी थी। गुरू तो ज्ञान का भंडार होता है और उनके पास शिष्यों को देने के लिए अनंत ज्ञान होता है। कई राग कई बंदिशें ऐसी थी, जिनको सीखने की इच्छा रह गई।
कौन थे पंडित कुमार गंधर्व
यूं तो पंडित कुमार गंधर्व का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। अपने आप में संगीत का समग्र घराना पंडित कुमार गंधर्व थे। कर्नाटक के धारवाड़ से शिवपुत्र सिद्धरामैया कोमकली यानी कुमार गंधर्व देवास में टीबी की बीमारी का उपचार कराने आए थे। यहीं उन्होंने स्वास्थ्य लाभ लिया और बाद में यहीं शिवपुत्र सिद्धरामैया कोमकली से कुमार गंधर्व तक का सफर किया। 1948 में देवास आने के बाद वे यहीं के होकर रह गए। अब उनकी पुण्यतिथि पर भानुकुल में 14 एवं 15 जनवरी को देश के ख्यातिप्राप्त संगीतज्ञ, साहित्यकार पहुंचेंगे। यहां विभिन्न आयोजन इस दौरान होंगे।