इस बिजी लाइफ लोगों के पास कुकिंग के लिए टाइम नहीं होता, जिससे इंडिया में भी फ्रोजन फूड का ट्रेंड बढ़ गया है। जब काम के बाद थकान हो जाती है तो खाना बनाना मुश्किल हो जाता है। ऎसे में फ्रोजन फूड आसान ऑप्शन साबित होता है। फ्रोजन फूड कबाब से लेकर चिकन तक और पिज्जा से लेकर परांठा तक, जो मन किया खरीदा और खाया। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा कि फ्रोजन फूड के जितने फायदे हैं, उतने नुकसान भी।
भले ही इससे आप अपनी भूख को तो चुटकियों में मिटा लेते हैं, लेकिन इससे बॉडी को कितना नुकसान झेलना पड़ता है, इसके बारे में आप कुछ नहीं सोचते। न्यूट्रिशंस और फिटनेस कोच सोनिया बजाज कहती हैं, 'फ्रोजन फूड ईजी स्नैकिंग होता है। काफी हद तक आप इसे हेल्दी भी कह सकते हैं। इसे कभी- कभार लिया जा सकता है, लेकिन वह फूड अवॉइड करें, जिसमें प्रोसेसिंग बहुत ज्यादा इनवॉल्व हो।'
फ्रोजन नॉनवेज में कई तरह के सैचुरेटेड फैड होते हैं, जो बैड कॉलेस्ट्रॉल यानी एलडीएल लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन का लेवल बढाते हैं।
फैट होता है ज्यादा
इन प्रॉडक्ट्स में फैट की क्वॉन्टिटी बहुत ज्यादा होती है। इसलिए जब भी फ्रोजन फूड खरीदें, तो इस बात पर जरूर गौर करें कि उसमें सैचुरेटेड फैट कितना है। वही फूड लें, जिसमें 1.5 ग्राम से कम फैट हो। दरअसल, फ्रोजन फूड में प्रोटीन की क्वॉन्टिटी कम और फैट की ज्यादा होती है। आप फ्रोजन पिज्जा को ही लें, तो इसमें हैवी अमाउंट चीज और मीट टॉपिक्स होती है। एनिमल बेस्ड फ्रोजन में कई तरह के सैचुरेडेट फैट होते हैं, जो आपके बैड कॉलेस्ट्रॉल लेवल को बढ़ाते हैं।
फ्रोजन फूड के लिए फ्रिज का टेंपरेचर 5 डिग्री से कम होना चाहिए। जो खाना निकालें, उसे तुरंत गर्म करें। रूम टेंपरेचर में यूं ही खाने को न पड़े रहने दें। सर्व करने से पहले चेक कर लें कि खाना पूरी तरह गर्म हो और भाप छोड़ रहा हो। आधा गर्म खाना आपको नुकसान पहुंचा सकता है। खाना गर्म करने से 5 से 10 मिनट पहले खाने को फ्रिजर से बाहर निकाल लें, ताकि उसकी बर्फ खुद-ब- खुद पिघल जाए।'
क्रिस्पी नहीं रहता खाना
फ्रोजन वेजिटेबिल्स में हालांकि मटर का टेस्ट तो सही बना रहता है, लेकिन पौटेटो, ब्रोकली और जूचीनी वगैरह में वॉटर लॉग होने से वे अपना क्रिस्पी टेक्सचर खो देती हैं। दरअसल, ये सब्जियां नमी से भरी होती हैं और फिर पकाने के बाद वे टेस्ट नहीं दे पातीं, जो ओरिजिनल सब्जियों का होता है।
कलर हो जाता है चेंज
अगर प्रोपर पैकेजिंग न हो, तो फ्रोजन फूड अपना कलर चेंज कर देता है। मसनल, फ्रेश मीट का ब्राइट रेड कलर स्टोर करने के बाद डार्क और पेल ब्राउन हो जाता है। कुक्ड फूड के साथ भी यही होता है। इसकी वजह ऑक्सिजन की कमी होती है। वैसे, पोल्ट्री तो फ्रीजिंग के बाद आमतौर पर कम ही कलर चेंज करते हैं, लेकिन बींस और मीट स्टोर करते ही दो से तीन घंटे में ही डार्क कलर ले लेती हैं।
न्यूट्रिशंस में कमी
फ्रीजिंग प्रोसेस में फूड की न्यूट्रिशंस वैल्यू बहुत कम हो जाती है। इस दौरान विटामिन बी और विटामिन सी तकरीबन लॉस हो जाता है।' वैसे आपको बता दें कि फ्रोजन फूड में तकरीबन 50 फीसदी विटामिन सी खत्म हो जाता है। फिर पकाने की प्रोसेस भी इस पर खासा असर डालता है। वैसे, आप पैकेट के बजाय कैन वेजिटेबल्स में ज्यादा न्यूट्रिशंस पा सकते हैं।