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Health

32 के उम्र के बाद महिलाओं को घेरती हैं बीमारियां

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Feb 3 2018 5:51PM | Updated Date: Feb 3 2018 5:51PM
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20 से 30 वर्ष की उम्र जोश व उत्साह से भरी होती है, लेकिन 32 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते सेहत के प्रति लंबे वक्त से चल रही अनदेखी के कारण कई प्रकार की बीमारियां पनपने लगती हैं। 32 की उम्र पार करते ही महिलाओं में अनियमित पीरियड्स, पीसीओडी, थायरॉइड जैसी बीमारियां हमला करने लगती हैं। इसके अलावा कैल्शियम की कमी भी महिलाओं में इस उम्र के बाद आमतौर पर देखने को मिलती है।

बचें पीसीओडी से
पॉलिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम के कारण शरीर में तेजी से हारमोन से जुड़े बदलाव होते हैं। इसके कारण अंडे पैदा करने और गर्भधारण के लिए गर्भाशय को तैयार करने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। यह समस्या देश में प्रजनन आयु वाली करीब 10 प्रतिशत महिलाओं में पाई जाती है। पीसीओडी में ओवरी (अंडाशय) में थैलीनुमा कोश उभर आते हैं, जिसमें एक तरल पदार्थ भरा होता है।
 
पीसीओडी से ग्रस्त मरीज में हार्मोन का स्तर असामान्य हो जाता है। इस बीमारी से पीड़ित महिलाओं के शरीर में अत्यधिक मात्रा में इंसुलिन भी बनने लगता है, जिसकी वजह से उनके शरीर में पुरुष हार्मोन एस्ट्रोजन का उत्पादन बढ़ने लगता है। उनके चेहरे पर पुरुषों की तरह बाल आने लगते हैं। समय रहते बीमारी पर काबू पा सकते हैं।
 
नियमित जांच करें
30 साल की आयु के बाद महिलाओं के स्तन में अमूमन गांठें बन जाती हैं। जरूरी नहीं है कि स्तन में बनने वाली हर गांठ कैंसर की ओर ही इशारा कर रही हों। पर, यह कैंसर का शुरुआती संकेत जरूर है। भारत में हर 28 में एक महिला को ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा होता है। इस बीमारी से बचने के लिए नियमित रूप से अपने स्तन की जांच करें। सही समय पर पता लगने से इस बीमारी का इलाज संभव है।
 
एंड्रोमेट्रियॉसिस
एंड्रोमेट्रियॉसिस बीमारी में महिला के गर्भाशय यानी यूट्रस की बाहरी परत बनाने वाला उत्तक यानी टिश्यू असामान्य रूप से बढ़कर शरीर के अन्य अंगों जैसे अंडाशय, फेलोपियन ट्यूब और अन्य आंतरिक अंगों तक फैल जाता है। इस बीमारी से पीड़ित महिला को जब पीरियड होता है, तो ये टिश्यू टूट जाते और इनमें घाव हो जाता है परिणामस्वरूप पीरियड के वक्त उन्हें असहनीय दर्द होता है। यह परेशानी उन्हें हर माह झेलनी पड़ती है। इस बीमारी के कारण गर्भधारण की क्षमता भी कई बार प्रभावित हो जाती है। जांच, हार्मोन ट्रीटमेंट और सर्जरी के माध्यम से इस बीमारी का इलाज किया जाता है।
 
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