मानव के विकास में आहार का बड़ा योगदान रहा है। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार मानव की उत्पत्ति को मानें तो प्रारंभिक अवस्था में पत्तियां और कंदमूल खाले वाले आदिमानव को फलाहार से मस्तिष्क के विकास में अहम सहायता मिली। क्या खाएं क्या ना खाएं? इसके लिए लोग आजकल गूगल तक का सहारा लेते हैं। इंटरनेट पर संतुलित आहार तलाशें तो एक क्लिक पर इतने रिजल्ट सामने आ जाते हैं कि ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि किस डाइट चार्ट पर अमल किया जाए और किस पर नहीं। किसी में लिखा होता है कि कॉर्बोहाइड्रेड मत खाएं, ज्यादा प्रोटीन वाली चीजें खाएं।
आजकल तमाम कंपनियां, लोगों को बरगलाने के लिए अपने प्रोडक्ट के बारे में तमाम दावे करती हैं। दुनिया के बहुत सारे आहार विशेषज्ञ मानते है कि ‘सुपर फूड’ जैसी कोई चीज होती ही नहीं अपने खाने और खाने की आदतों के प्रति ये सिर्फ़ लोगों का एक पागलपन है। हमारे शरीर को किसी एक पोषक तत्व की जरूरत नहीं होती है, बल्कि सही तादाद में सभी पोषक तत्व हमारे खाने में शामिल होने चाहिए। किसी में लिखा होता है गर्म मसाले भी सेहत के लिए अच्छे होते हैं, लिहाजा उनसे परहेज मत कीजिए। कुछ लोग तो इंटरनेट पर मिली इस जानकारी पर ही अमल करना शुरू कर देते हैं कि उन्हें अपनी उम्र और कद के हिसाब से कितनी कैलरी लेनी चाहिए। आहार विशेषज्ञ डॉक्टर रोजमेरी स्टैंटन का कहना है कि मुश्किल इसी बात की है कि लोग किसी एक खास पोषक तत्व के पीछे पड़ जाते हैं। जैसे अक्सर लोगों को लगता है कि कॉर्बोहाइड्रेड अपने आहार से निकालने हैं और ज्यादा प्रोटीन शामिल करना है। आज हमारा ध्यान आज ताजा फल-सब्जिÞयों से हट चुका है। हमारे खान-पान में रेडीमेड चीजों की तादाद बढ़ गई है। चूंकि इन खानों को बनाने वाले ये जानते हैं कि आपको कैसे खाने की तलाश है। लिहाजा आपकी उसी कमजोरी को वो अपना हथियार बना लेते हैं और बड़े-बड़े दावों के साथ बाजार में उत्पाद उतारने शुरू कर देते हैं, जबकि जिस पोषक तत्व का वो दावा करते हैं वो उस खाने में नाममात्र को ही होते हैं। विशेषज्ञ मानते है कि हमें उचित मात्रा में हरेक चीज का लुत्फ लेना चाहिए. आपके खाने में फल और सब्जिÞयां दोनों शामिल होनी चाहिए। मोटा अनाज, थोड़ी मात्रा में प्रोटीन, मछली और समुद्री खाने खास तौर पर आहार के हिस्से होने चाहिए। लेकिन हां, अगर अपने खाने से मीठा हटा दें या कम कर दें तो कोई हर्ज नहीं। जो आहार अभी उपलब्ध हैं उसके अलावा भी ऐसे खानों पर ध्यान दिया जाए जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले न हों। जैसे हमें ‘समुद्री घास’ को खान-पान में शामिल करना चाहिए।
इसमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन, ओमेगा-3, फाइबर, एंटी- आॅक्सिडेंट, विटामिन और खनिज होते हैं। इसकी खासियत के बारे में अभी लोगों को पता नहींहै। जरूरत है कि लोग खाने की आदतों को बदलने के बजाय इसे अपने खाने में शामिल करें। रोजमर्रा के खान-पान में सी वीड को शामिल करके इसके प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ाई जा सकती है। जैसे बर्गर-पास्ता ऐसे रेडीमेड खाने हैं, जिन्हें सारी दुनिया में बड़े चाव से खाया जाता है। अगर समुद्र की इस जादुई घास को इन खानों का हिस्सा बना दिया जाए तो लोगों को जरूरी पोषक तत्व मिलने लगेंगे और उनकी जानकारी भी बढ़ेगी। कुल मिलाकर, हमें किसी ऐसे खाने की तलाश बंद कर देनी चाहिए, जिससे चमत्कार होगा। इसके बजाय आदतों और खान-पान में छोटे बदलाव से हम अपने मौजूदा खाने को ही ‘सुपरफूड’ में तब्दील कर सकते हैं।
सुपर फूड कोई जादुई खाना नहीं
सुपरफूड एक ऐसा शब्द है, जो खाद्य पदार्थों के लिए, उनके खास फायदों और गुणवत्ता के आधार पर प्रयोग किया जाता है। लेकिन फिर भी इस शब्द को आसानी से ऐसे समझा जा सकता है कि - अगर आपकी डाइट, आपके लिए कैलोरी से हटकर, पोषण प्राप्त करने का जरिया है, तो बेशक इसमें सुपरफूड शामिल है। अगर आप सोचते हैं कि आपको पोषक तत्व भी मिल जाएं और वजन भी न बढ़े, तो यह काम आपके लिए सिर्फ सुपरफूड कर सकते हैं। वहीं अगर आप सिर्फ वजन कम करने का सोचें लेकिन पोषण पर आपका ध्यान नहीं है, तो ऐसे में आप कुछ वजन कम करेंगे, तो बाद में बेशक उससे ज्यादा बढ़ा लेंगे। तो कुल मिलाकर सुपरफूड आपको सेहत और पोषण संबंधी फायदों के साथ, स्वत: ही वजन कम कर, एक अतिरिक्त तोहफा भी देते हैं, बस आपको इनके बारे में जानकारी होनी चाहिए। सामान्यत: हम भले ही अच्छी डाइट लेते हैं, लकिन फिर भी वह अपर्याप्त होती है। सुपरफूड इस कमी को पूरा करते हैं। हम फूड की अपनी विशेषता और फायदे होते हैं, लेकि कुछ सुपरफूड ऐसे होते हैं, जिनमें हमें दोनों एक साथ मिल जाते हैं। यह एक तरह से पोषण से भरे हेल्थ सप्लीमेंट की तरह होते हैं। सुपरफूड हमें विटामिन, मिनरल एवं अन्य पोषक तत्वों के साथ ही एंटीआॅक्सीडेंट और फ्लेवेनॉइड जैसे अतिरिक्त पोषण से भरे तत्वों का पैकेज देते हैं, इसलिए ही शायद इन्हें सुपर फूड कहा जाता है।