आदिल कुरैशी
हैल्थ डेस्क। पिछले दशक के दौरान आर्थिक मोर्चे पर शानदार तरक्की के बावजूद भारत में कुपोषण की व्यापक समस्या देश का सिर शर्म से झुकाने का सबब लगातार बनी हुई है।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक (जीएचआई), वर्ष 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक भरपेट भोजन की गंभीर कमी से जूझ रहे प्रमुख देशों में भारत का स्थान 20वां है। यह रैंकिंग भारत को दक्षिण एशियाई देशों में तीसरे स्थान पर रखती है जो पड़ोसी मुल्कों अफगानिस्तान और पाकिस्तान से बस ज़रा ही बेहतर है।
केंद्र के साथ ही राज्य सरकारें इस बदहाली से निपटने के लिए कई कार्यक्रम चला रही हैं। फिर भी काफी काम की दरकार है। इन चिंताजनक हालात में अम्मतुल फातिमा नाम की शोधार्थी की खोज नई रोशनी लेकर आई है। अब हमारे पास एक उम्मीद की किरण है।
देश के कई हिस्सों में बच्चों और महिलाओं में कुपोषण की स्थिति भयावह है। दुनिया के कुपोषण का शिकार कुल बच्चों में एक तिहाई से ज्यादा भारत में ही बसते हैं। कुपोषण के अधिकांश पीड़ितों में बड़ी संख्या किशोर बालिकाओं की है। ऐसे समय में जब सरकार के लिए बच्चों और महिलाओं में कुपोषण एक जबरदस्त गंभीर चुनौती के रूप में मौजूद है, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गृह विज्ञान विभाग की सीनियर रिसर्च स्कॉलर अम्मतुल फातिमा ने एक मजबूत और ज़ायकेदार समाधान पेश कर दुनियाभर का ध्यान अपने शोध की तरफ आकर्षित किया है। फातिमा ने उच्च पोषक तत्वों से भरपूर हरे-नीले रंग की एल्गी (शैवाल) स्पिरुलीना से एक खास बिस्किट तैयार किया है जो कुपोषण के शिकार बच्चों की सेहतमंदी की दिशा और कुपोषण की खिलाफ हमारे संघर्ष में मील का पत्थर साबित होगा।
मध्यान्य: भोजन के साथ यह बिस्किट देश की अगली पीढ़ी की शारीरिक-मानसिक मजबूती का लक्ष्य हासिल करने में आसान और कारगर हथियार साबित हो सकता है। पश्चिमी मुल्कों में बिस्किट, स्मूदीज़ और ड्रिंक्स में स्पिरुलीना का इस्तेमाल तेजी के साथ एक आम बात होता चला जा रहा है। कुपोषण के खिलाफ जंग के एकमात्र उद्देश्य के लिए भारत में संभवत: पहली बार स्पिरुलीना के बिस्किट बनाए गए हैं।
प्रयोगशाला में प्रमाणित
फातिमा ने अपने बिस्किट की प्रभावकारिता का परीक्षण हीमोग्लोबीन की कमी से ग्रस्त व्यक्तियों पर किया। 45 दिनी प्रयोग की शुरुआत में हीमोग्लोबीन का जो स्तर 7.94 मिग्रा प्रति डेसिलीटर था, स्पिरुलीना बिस्किट खाने वाले लोगों में समापन पर वह बढ़कर 9.42 मिग्रा प्रति डेसिलीटर तक पहुंच चुका था। फातिमा के अलावा अन्य शोधकर्ताओं ने स्पिरुलीना की कैंडी को तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में दो हजार आदिवासी बच्चों पर आजमाया और इसका सकारात्मक असर देखा गया। 80 और 90 के दशक में नासा व यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने अपने प्रयोगों के बाद कहा था कि लंबे समय के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के दौरान स्पिरुलीना मददगार हो सकता है क्योंकि इसे अभियानों के दौरान भी उगाया जा सकता है।
यूं समझें भारत में कुपोषण की भयावहता को
यूनिसेफ के अनुसार भारत में चार वर्ष से कम उम्र के 60 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं
भारत में 29.4 % बच्चों का वजन सामान्य से कम है
इनमें से 38.7 % बेहद कमजोर हैं
कुपोषण के कारण संक्रामक रोगों से लड़ने की क्षमता में आती है कमी
उत्पादकता में कमी, मृत्यु दर में बढ़ोतरी
दुनिया में कुपोषण के शिकार तीन बच्चों में से एक बच्चा भारत का है।
स्रोत: रैपिड सर्वे ऑन चिल्ड्रन (आरएसओसी)
जवाब है स्पिरुलीना
स्पिरुलीना हरे-नीले रंग का शैवाल या एल्गी है जिसकी रचना स्प्रिंगनुमा है।
संयुक्त राष्ट्र ने 1974 में स्पिरुलीना को धरती के लिए भविष्य का सर्वश्रेष्ठ आहार घोषित किया था।
यह शैवाल सुपर फूड ग्रुप में शुमार है क्योंकि इसमें करीब 70 फीसदी प्रोटीन हंै। 4. स्पिरुलीना उत्पाद पोषक तत्वो से भरपूर हैं। ये कई सारी बीमारियों से लड़ने में मददगार हैं। इसमें एंटी वायरल एक्टिीविटी भी पाई जाती है
स्पिरुलीना मे कोलेस्ट्रॉल व स्टार्च नहीं पाया जाता, सोडियम व कैलोरीज बहुत कम मात्रा में होती हैं
स्पिरुलिना में एंटी ऑक्सीडेंट की प्रचुर मात्रा होने से यह कैंसर के खतरे को कम करता है।
फातिमा के अनुसार तीन ग्राम स्पिरुलीना 220 ग्राम फल और सब्जियों के बराबर न्यूट्रिशियन वैल्यू रखता है
12 बिस्किट की कीमत लगभग 15 रुपए पड़ेगी। अर्थात तकरीबन 1.25 रुपए प्रति बिस्किट
भारत में आसानी से उपलब्ध है। जितना जरूरी होगा उतना पॉवडर भारत में मिल जाएगा।
आम जनता के लिए खास पोषण
दैनिक दबंग दुनिया के साथ खास टेलिफोनिक बातचीत में युवा शोधार्थी अम्मतुल फातिमा ने बताया मैं ऐसी कोई चीज़ बनाना चाहती थी जो लाने-लेजाने में आसान हो, आसानी से पचने वाली हो, सस्ती हो और आम जनता जिसे आसानी के साथ अपना ले। इन सारी खूबियों के लिए मुझे बिस्किट सबसे बेहतर नजर आया। फातिमा कहती हैं उन्हें इस शोधकार्य में पांच साल का समय लग चुका है। पांचवें साल में शोध पूरा होने के साथ ही स्पिरुलीना बिस्किट को व्यायसायिक स्तर पर लॉन्च करने की योजना भी फातिमा तैयार कर रही हैं। इस काम में छह माह का समय लग सकता है। फातिमा के बिस्किट को अस्थायी पेटेंट मिल गया है और वे इसके स्थायी पेटेंट के लिए आवेदन कर चुकी हैं। आत्मविश्वास के साथ वह कहती हैं, मुझे पूरा भरोसा है कि कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में स्पिरुलीना बिस्किट एक क्रांतिकारी पहल साबित होगी। इस महत्वपूर्ण शोध को अंजाम देने वाली फातिमा घरेलू मोर्चे पर भी उतनी ही सक्रिय हैं। उनके पति अमन आलम एक प्राइवेट कंपनी में रिलेशनशिप मैनेजर हैं। कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए खास बिस्किट बनाने वाली यह युवा रिसर्च स्कॉलर अपने आठ माह के बेटे के श्रेष्ठ पालन-पोषण में कोई कोताही नहीं बरततीं।
आदिवासी इलाकों में जरुरत
अध्ययन के दौरान नियमित रूप से स्पिरुलीना का सेवन करने वालों की सेहत (कद और वजन) में इसका इस्तेमाल न करने वाले समूह के बच्चों के मुकाबले उत्साहजनक सुधार दिखा है। इसके प्रयोग को देश के आदिवासी इलाकों में बड़े पैमाने पर दीर्घकाल के लिए चलाया जाना चाहिए। -डोला महापात्र, राष्ट्रीय निदेशक चाइल्ड फंड इंडिया