29 Mar 2024, 03:47:54 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

हमें सर्वोच्च शक्ति को धन्यवाद देना चाहिए कि हमने पृथ्वी के एक ऐसे भू-भाग में जन्म लिया है जहां सूर्य के प्रकाश की असीम कृपा है। सूरज की किरणें मन में प्रकाश भरती हैं और शरीर को स्वस्थ रखती हैं। अब तो चिकित्सक भी यह मानते और स्वीकार करते हैं कि सूर्य के ताप का निरोगी काया रखने में कितना महत्व है। मतलब यह है कि सूरज अंधकार को तो दूर करता ही है और साथ ही वह हमारा वैद्य और डॉक्टर भी है।

हमारे मनीषी सूर्य की इस शक्ति को बहुत पहचानते थे और उसके उपचार के विषय में आज के चिकित्सकीय विज्ञान के बहुत पहले से जानते थे इसलिए उन्होंने सूर्योपासना को केवल उसके महत्व के कारण बहुत स्वीकारा और इस पर बल भी दिया। मकर संक्रांति का यह पर्व उसी का एक क्रम है जिसे भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक देश के प्रत्येक भाग में अपने-अपने ढंग और तरीकों से मनाया जाता है। प्रत्येक त्योहार को मनाए जाने की तरह ही इस पर्व में भी महिलाओं की बहुत सक्रिय भागीदारी होती है। इसमें की जाने वाली तैयारी में वह बहुत उत्साह व ऊर्जा से भाग लेती हैं। वह तरह-तरह के व्यंजन बनाती हैं और सुबह-सवेरे ही परिवार के सुख व स्वास्थ्य की प्रार्थना करने के लिए सूर्य को अर्ध्य देती हैं। वास्तव में भारतीय महिलाओं के प्रत्येक त्योहार और पर्व मनाने में उनके ध्यान के केंद्र में केवल परिवार ही मौजूद होता है, इसलिए यह पर्व भी अपवाद नहीं है। देश के कुछ भागों में तो परिवार के सभी सदस्यों को विशेष प्रकार के औषधीय उबटन से स्नान करना होता है। इसके लिए भी महिलाएं बहुत रुचि से व जुटकर तैयारी करती हैं। यहां तक कि महिलाओं का सूर्य के प्रति इतना समर्पण भाव है कि वह परिवार में जन्म लेने वाले शिशु को भी सूर्य दर्शन करवाने का विशेष आयोजन करती हैं, जिसे छठ दर्शन या ‘सूरज पूजन’ भी कहा जाता है और इसी तरह वह शिशु का प्रकाश से परिचय करवाती हैं। आजकल शायद ऐसा आयोजन कम हो गया है पर, सूर्य के प्रति कृतज्ञ होने के लिए आयोजन का क्रम बना रहना चाहिए। यदि महिलाएं कोई त्योहार मनाएं और उसके उपलक्ष्य में उससे संबंधित गीत न गाएं तथा नृत्य न करें तो ऐसा हो ही नहीं सकता। इसलिए पंजाब में महिलाएं झूम-झूमकर गिद्दा नृत्य करती हंै तो असम में सज-धजकर एक-दूसरे की कमर में बाहें डालकर बीहूू नृत्य करती हैं। कैसी उन्मुक्त संस्कृति है यह विभिन्न प्रदेशों के त्योहार मनाने के रीति-रिवाजों में महिलाओं को नाचने-गाने के भरपूर अवसर हैं। बिना कुछ कहे या नारी मुक्ति व अधिकारों का शोर मचाए महिलाएं आनंद उठाती हैं और अपने प्रसन्न रहने के हर त्योहार में अवसर पाती हैं। इससे जो उन्हें ऊर्जा मिलती है उसी के बल पर वह परिवार के प्रत्येक उत्तरादायित्व को खुशी से पूरा करती हैं।

‘तमसो मां ज्योतिर्गमय’ कहने वाले इस समाज में महिलाओं की सूर्योपासना और आराधना करने में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। वही इस पर्व को जीवंत बनाती हैं तथा उन्हीं के उत्साह से आज भी हमारे प्रति वर्ष मनाए जाने वाले इस त्योहार का क्रम जारी है। उन्होंने ही इसे तिल-गुड़ का प्रसाद बनाकर तथा उसे सबके साथ बांटकर मीठा-मीठा बोलने का परामर्श देना बना रखा है। सूर्य के प्रति वह पूरी तरह समर्पित हैं, क्योंकि उसी की किरणों को वह अपने शिशुओं पर भरपूर पड़ने देती हैं। उसी के प्रकाश में वह अपने बच्चे की मालिश कर उसे नहलाती-धुलाती हैं। मकर संक्रांति का यह पर्व मनाते हुए महिलाओं का उस शक्ति से परिचय होता है जिसमें वह परिवार की धूरी बनकर उसके पोषण तथा उसके स्वास्थ्य का ध्यान रखती हैं। उनकी सूर्य आराधना सफल हो और वह भी इसी तरह सूर्य के समान शक्तिवान व ऊर्जावान प्रतीक बनी रहें यही इस पर्व पर कामना है।

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