29 Mar 2024, 03:48:31 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-जी. पार्थसारथी
पूर्व विदेश सचिव


जब भारत ने 20 अप्रैल, 2012 को पहली बार तीन चरणों वाली बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का सफल परीक्षण किया था, उस वक्त चीन ने अपनी काफी सधी हुई प्रतिक्रिया में कहा था, चीन और भारत, दोनों ही एक उभरती हुई ताकतें हैं और हम कोई प्रतिद्वंद्वी मुल्क न होकर एक-दूसरे का साथ देने वाले सहयोगी देश हैं। चीनी सरकार के आधिकारिक समाचार पत्र ‘द ग्लोबल टाइम्स’ का रुख भी अपेक्षाकृत तब नरम था। तथापि इसमें लिखा गया था, भारत को अपनी ताकत का अतिशयपूर्ण मूल्यांकन नहीं करना चाहिए। अब यदि उसके पास अंतरमहाद्वीपीय मिसाइलें हैं भी और उन्हें चीन के अधिकतर इलाके तक मार करने में सक्षम मान लिया जाए, तो भी इसका यह मतलब नहीं है कि चीन के साथ अपने लंबित विवादों में उसे अपनी इस उपलब्धि पर गर्व करने से कुछ ज्यादा हासिल हो सकेगा। भारत को जान लेना चाहिए कि चीन की परमाणु शक्ति उसके मुकाबले कहीं ज्यादा ताकतवर और भरोसेमंद है।

आने वाले कुछ सालों में भी भारत, चीन के साथ हथियारों की दौड़ में कहीं नहीं टिक पाएगा। जब भारत ने डीआरडीओ द्वारा 26 दिसंबर 2016 को अग्नि-5 का चौथा और अंतिम तैनाती-पूर्व परीक्षण भी सफलतापूर्वक कर दिखाया तो इस बार अगले दिन चीन की आई प्रतिक्रिया काफी उत्तेजित और आक्रामक थी। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हू चुनयिंग ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा समिति द्वारा 6 जून 1998 को भारत और पाकिस्तान द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों के मद्देनजर पारित किए गए प्रस्ताव  का हवाला दिया। उनके अनुसार इस प्रस्ताव में भारत और पाकिस्तान को तत्काल प्रभाव से अपने-अपने परमाणु हथियार विकास कार्यक्रमों को रोक देने को कहा गया था, साथ ही बैलेस्टिक मिसाइलों को विकसित करने और परमाणु बम बनाने और इन्हें तैनात करने से गुरेज करने के अलावा परमाणु बम ले जाने में सक्षम बैलेस्टिक मिसाइलों का विकास कार्यक्रम तुरंत स्थगित करने को कहा था। हू ने भारत से कहा कि वह यह भी बताए कि मंशा दरअसल है क्या? लगता है चीन यह भूल गया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुझाव पर अमल करने के लिए भारत बाध्य नहीं है। वैसे इस बार ‘द ग्लोबल टाइम्स’ की प्रतिक्रिया तल्ख और विषैली थी। लेख में भारत को कमतर गिनाते हुए और खासतौर पर इसे पाकिस्तान के समकक्ष रखा था। 

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था, भारत की सामरिक सार्वभौमिकता और लगातार उन्नयन से इस क्षेत्र में सामरिक स्थिरता बनाने में मदद मिलेगी। 2012 और 2016 के वक्फे में अग्नि-5 मिसाइल को लेकर आने वाली चीन की प्रतिक्रियाओं में जो इतना बड़ा अंतर आया है, उसके पीछे कई कारण हैं। इसी बीच 2012 में फिलीपींस के विशेष आर्थिक क्षेत्र के अंतर्गत आते इलाके के एक हिस्से, स्कारबोरो शोअल नामक द्वीप पर चीन की सेना ने अपना कब्जा जमा लिया। इसके बाद उसने बड़ी ढिठाई से संयुक्त  राष्ट्र न्यायाधिकरण द्वारा सुनाए गए फैसले को भी मानने से साफ इनकार दिया था। इस प्रकार न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में चीन के वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया और ब्रुनेई से साथ सीमा संबंधी दावों को खारिज करते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करार दिया है।

इसी बीच चीन ने दक्षिण चीन सागर में अनेक चट्टानों को अपने द्वीपों में परिवर्तित कर दिया है और उन पर मिसाइलों के अलावा सशस्त्र सैनिक और लड़ाकू हवाई जहाज तैनात कर दिए हैं। उधर ओबामा प्रशासन ने चीन द्वारा फिलींपीस के प्रति अपनाए जा रहे आक्रामक तेवरों पर न के बराबर कोई कार्रवाई की। अमेरिका के समुद्री ड्रोन पर समर्पण से चीन को अपने आक्रामक तेवर दिखाने की और ज्यादा शह मिल गई। फिलीपींस के राष्ट्रपति ड्युटेरटे ने भी चीन द्वारा उनके इलाके पर जो दावा किया जा रहा है, उसे चुपचाप मानने में ही अपने मुल्क की भलाई समझी है। एसियान संगठन के देशों जैसे कि मलेशिया, ब्रुनेई, थाईलैण्ड और कंबोडिया भी अब यही करने की सोच रहे हैं। अग्नि-4 मिसाइल जो कि फिलहाल सेना में तैनात है और वह अपनी 4 हजार  कि.मी. की रेंज के साथ चीन के दक्षिणी भागों को निशाना बनाने में सक्षम है।  यानी यह चीन के दूरस्थ इलाकों तक भी बखूबी मार करने में सक्षम होगी। इसके अलावा हमारी नौसैना में पनडुब्बी से दागी जाने वाली सागरिका नामक मिसाइलें भी तैनात हैं, जिनकी मारक दूरी 750 कि.मी. तक हो सकती है।

भारत द्वारा विकसित की जाने वाली मिसाइलों की रेंज ने चीन को स्पष्ट संदेश दिया है कि यदि उसने पाकिस्तान को मोहरा बनाकर हमारे खिलाफ किसी तरह का एटमी हमला करवाया तो यह खुद उसे भी महंगा पड़ेगा। अग्नि-5 की एक खासियत यह है कि इसका तोड़ लगभग असंभव है और यह अत्यधिक चलायमान होने के अतिरिक्त छदम खोलों में छिपाई  जा सकती है, जिन्हें पहचान पाना कठिन होता है। चीन के साथ परमाणु मुद्दों  पर बृहद संवाद बनाने के लिए भारत को बहुत ज्यादा सक्रियता बरतने की जरूरत है। भारत को परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र के तौर पर मान्यता देने वाले मामले में उसके विरोध जगजाहिर हैं, जबकि वह खुद पाकिस्तान को अंदरखाते परमाणु बमों और बैलेस्टिक मिसाइलों के डिजाइन और सामान मुहैया करवा रहा है। वैसे पाकिस्तान को यह सब मुहैया करवाना चीन द्वारा अंतरराष्ट्रीय परमाणु निरस्त्रीकरण संधि के प्रति उत्तरदायित्व की सरासर अवमानना है। चीन के हेकड़ी और दर्प भरे रवैये पर मित्र राष्ट्रों जैसे कि जापान, वियतनाम और इंडोनेशिया के साथ गहन विचार विमर्श और संवाद बनाए रखने की जरूरत है।एक परमाणु-हथियार संपन्न जापान अवश्य ही चीन के तेवरों और हेकड़ी को सही ठिकाने पर लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका  निभा सकता है। चीन ऐसा विषय है जिस पर बहुत सावधानी से काम करने की जरूरत है।

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