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Gagar Men Sagar

विदेश मंत्रालय और भावनाओं का वर्चस्व

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 11 2017 10:40AM | Updated Date: Jan 13 2017 12:26PM
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-वीना नागपाल

क्या महिलाओं की तथा सामान्य परिवारों की विदेश विभाग और उसकी नीति में कोई रुचि हो सकती है? भारत के अन्य देशों के साथ किस तरह के संबंध है और उनके साथ व्यापारिक तथा सैन्य अस्त्रों-शस्त्रों को लेकर कैसी बातचीत वर्तमान में की जा रही है क्या इसमें रुचि है? दरअसल देखा जाए तो महिलाओं की इस बात को लेकर क्या दिलचस्पी हो सकती है कि अन्य देशों के साथ भारत की कूटनीति कितनी सफल हुई है? महिलाओं के लिए तो अपने ही देश में सुरक्षा पाना तथा अपने परिवारों के हितों की पूर्ति बहुत अहम मुद्दा होता है। परंतु कुछ ऐसी घटनाएं हुर्इं कि अब न केवल महिलाएं विदेश मंत्रालय को पहचान रही हैं और उसकी जानकारी प्राप्त रही हैं बल्कि उन्हें यह भी समझ में आने लगा है कि विदेश मंत्रालय उनके विदेशों में रह रहे प्रियजनों व संबंधियों के हितों की कितनी रक्षा करता है और उनकी समस्याओं को दूर करने में कितना सहायक होता है।

सुषमा स्वराज विदेश मंत्रालय की केंद्रीय मंत्री हैं। उन्होंने जिस प्रकार पारिवारिक मुद्दों को तथा उनसे संबंधित समस्याओं को लेकर  सक्रियता दिखाई है उससे महिलाओं को विदेश मंत्रालय ने केवल शुष्क विदेश नीति तक ही स्वयं को सीमित नहीं रखा बल्कि इसमें भावनाओं का समावेश भी कर दिया। मूक बधिर गीता को पाकिस्तान से भारत लाने की बात को विदेश मंत्रालय ने कितने ईमानदार प्रयासों से पूरा किया और इस सारे अभियान में सुषमा स्वराज ने कितनी रुचि ली और सक्रियता दिखाई। इसी तरह हरियाणा के एक युवक ने एक विदेशी युवती से विवाह किया पर उसे वीजा मिलने में कठिनाई आ रही थी। उसके परिवार वानों ने सुषमा जी को हरियाणवी में ट्वीट किया। सुषमाजी ने उन्हें हरियाणवी में ही जवाब देकर ट्वीट किया कि हर हाल में उनकी बहू उनके घर आएगी और वास्तव में विदेश मंत्रालय की सक्रियता से वीजा मिल गया। किसी भारतीय को तुरंत चिकित्सा सुविधा दिलवाना हो और उसे भारत आने में परेशानी हो रही है तो तुरंत सुषमा जी को ट्वीट करता है और उसकी सहायता की जाती है। ऐसे कई उदाहरण हैं जिनका जिक्र करने से बात का पुनर्रार्वतन हो जाएगा। बात यहां पर खत्म होती है कि विदेश मंत्रालय ने एक रक्षा मंत्रालय के स्थान पर जहां केवल कायदे व नियमों की बात होती थी और केवल इतना भर सोचा जाता था कि किसी अन्य देश से केवल कूटनीतिक संबंध ही बनाएं जा सकते हैं तथा यह तय किया जाता रहा है कि उस देश से हमारे कितने व्यापारिक व सामरिक लाभ हो सकते हैं आदि-आदि के साथ-साथ अब विदेश मंत्रालय यह भी सोचता है और-और ऐसा कुछ कर भी है कि हमारे देश के परिवारों से जो कई व्यक्ति व परिवार विदेश गए हैं उन्हें निरंतर यह महसूस होता रहे कि उनके अपने मूल देश का शासन उनकी चिंता करता है और उनकी हर परिस्थिति में उनके साथ खड़ा है। विदेश में रहने वाले देश के उन जनों को यह आश्वासन मिलता है कि वह वहां रह कर अकेले नहीं हैं।

विदेश मंत्रालय के इस स्वरूप के पीछे इसकी प्रमुख एक महिला की भावनाएं व सोच शामिल हैं। चंूकि वह महिला हैं और परिवारों के सदस्यों के परस्पर जुड़ाव के प्रति संवेदनशील हैं। इसलिए वह उस परिस्थिति को बहुत अच्छी तरह समझ पा रही है कि यहां का सदस्य परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने या अन्य किसी भी कारण से अगर विदेश गया है पर, उसका दिल अपने देश में छोडेÞ गए परिवार के लिए ही धड़कता है और परिवार भी उसी की निरंतर चिंता करता है। इसलिए यदि अब विदेश मंत्रालय मानवीय संवदेना को अपना कर उनको अपनी मौजदूगी अहसास करवार रहा है तो परिवार संतोष एवं निश्चंतता अनुभव कर रहे हैं। यह इसलिए संभव हुआ है कि एक महिला ने इसका स्वरूप और कार्य शैली दोनों ही को भावनाओं और संवेदनाओं से भी दिया है।

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