19 Apr 2024, 09:37:24 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-गौतम चौधरी
वरिष्ठ पत्रकार


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का रिपोर्ट कार्ड उतना खराब नहीं है, जितना प्रचार किया जा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार में अभी तक कोई भ्रष्टाचार के मामले सामने नहीं आए हैं, हालांकि सरकार पर यह आरोप लग रहा है कि पीएम ने जो वादे किए थे, उसमें से एक भी वादा पूरा नहीं हुआ है। इस आरोप में दम है, लेकिन इस मामले को लेकर जब गुजरात के राज्यपाल ओम प्रकाश कोहली से पूछा तो, उन्होंने कहा कि लोगों को भी धैर्य रखना होगा। किसी व्यवस्था को बनाने में समय तो लगता ही है। उन्होंने बताया कि सरकार की क्या स्थिति है, मुकम्मल तौर पर तो नहीं जानता, लेकिन सरकार अपने वादे पूरे करने की पूरी कोशिश कर रही है। उन्होंने बताया कि मैं खुद देख रहा हूं कि अब विभागों में एक नए प्रकार की कार्यसंस्कृति का विकास हो रहा है। अब अधिकारी सरकार एवं जनता के प्रति जिम्मेदार होने लगे हैं।

इधर, इसी विषय पर जब हमने दिल्ली के कुछ भाजपाई कार्यकर्ताओं से पूछा तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि पहले की तुलना में अब आम आदमियों के लिए सरकारी कार्यालय सहज-सा दिखने लगा है। हालांकि वे सामान्य कार्यकर्ता दिल्ली की केजरीवाल सरकार से जब भाजपा की केंद्र सरकार की तुलना करने लगे तो उन्होंने यह भी बताया कि केंद्र सरकार की तुलना में दिल्ली सरकार ज्यादा सक्रिय है। इस मामले में केजरीवाल की सरकार से, केंद्र सरकार को सीखना चाहिए। यकीनन यह नई बात थी। बहरहाल, प्रतिपक्षी तो प्रतिपक्षी होते हैं, लेकिन जब सरकार के ढाई साल के कार्यकाल का आकलन करने उत्तराखंड पहुंचा तो यहां प्रतिपक्षी कांग्रेस के लोग भी केंद्र सरकार के कार्य से खुश दिखे। कांग्रेस और अन्य दलों के लोगों का यह भी कहना था कि नोटबंदी के कारण मोदी की बड़ी किरकिरी हो रही है। उत्तराखंड के पहाड़ पर मोदी के प्रति लोगों की धारणा सकारात्मक है, लेकिन मैदानी क्षेत्रों में इसका उलटा दिखा। मैदान के लोग मोदी की अचानक की गई नोटबंदी से ज्यादा नाखुश दिख रहे थे। नोटबंदी को यदि हटा दिया जाए तो सरकार के प्रति कोई ज्यादा आक्रोश नहीं है। क्या विरोधी, क्या समर्थक दोनों यही कहते सुने गए कि सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यदि है तो भ्रष्टाचार मुक्त शासन।

दरअसल, विगत ढाई वर्षों में केंद्र सरकार में कोई भ्रष्टाचार के मामले सामने नहीं आए हैं, और कोई कितना ही बड़ा विरोधी क्यों न हो उसे मानना ही होगा कि यह सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि तो है। इधर, विदेश नीति के मामले में प्रथम चरण में सरकार ने पाकिस्तान के प्रति थोड़ी नरमी तो दिखाई थी और उसका खामियाजा देश को भुगतना पड़ा, लेकिन बाद में सरकार की सीमाई सक्रियता ने देश को सुरक्षित करने में बड़ी भूमिका निभाई। कुल मिलाकर अपने पड़ोसियों पर प्रभाव डालने में भी सरकार सफल दिख रही है। यदि पाकिस्तान को छोड़ दिया जाए, तो भारत का अन्य पड़ोसियों के साथ संबंध सामान्य ही हुआ है, हालांकि यह नीति पूर्व सरकार की ही थी, जिस पर मोदी सरकार अब अमल कर रही है और सफल भी हो रही है। इधर, अमेरिका के उकसावे पर दक्षिण चीन सागर में भारत का जाना आने वाले समय में बेहद खतरनाक साबित होगा। यही नहीं भाजपा सरकार ने अमेरिका के प्रति ज्यादा झुकाव दिखाया, जिसके कारण रूस से हमारी दूरी बढ़ने लगी है, जो आने वाले समय में हमें नुकसान पहुंचाने वाला साबित हो सकता है। इस्रायल, सऊदी अरब, ईरान आदि देशों के साथ संबंध सामान्य करके इस सरकार ने देश के युवाओं के लिए कई अवसर खोल दिए हैं, जिसका दूरगामी प्रभाव सकारात्मक पड़ने वाला है।

विदेश नीति में यदि थोड़ा बदलाव अवश्य दिख रहा है, तो वह अपने ढंग से चलने की कोशिश कही जाए या फिर भाजपा का अमेरिका प्रेम यह समझ में नहीं आता है, लेकिन यह नीति भारत के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं रहने वाली। सीमावर्ती क्षेत्रों में सबसे कठिन काम जो विगत स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अटका हुआ था, उसे मोदी की सरकार ने पूरा किया। दूसरी ओर बांग्लादेश के साथ जो सीमा विवाद था, उसे सुलझा लिया गया, जिसका हमें अब फायदा भी होने लगा है। देखा जाए तो बांग्लादेश अब बड़ी तेजी से अपने यहां के चरमपंथियों के ऊपर कार्रवाई करने लगा है, लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या यथावत है, जो इस सरकार को ठीक से सुलझाना करना था। ढाई साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने उस दिशा में पहल नहीं की, जबकि यह सत्तारूढ़ दल का सदा का घोषित एजेंडा रहा है। दूसरी ओर मोदी सरकार के एजेंडे में सबसे ज्यादा अहम रहा कश्मीर सर्वाधिक चर्चा में रहा है।

घाटी में अशांति है और वह आज भी जल रही है। इस सरकार को चाहिए कि वहां जल्द से जल्द शांति स्थापित करवाए, लेकिन सरकार जिस नीति पर काम कर रही है, उस नीति से कश्मीर में स्थाई शांति कभी संभव नहीं होगी। यह विचार मेरे नहीं किसी कश्मीर मामले को लेकर काम कर चुके एक प्रभावशाली कूटनीतिक के हैं। दूसरी ओर, पंजाब में आतंकवादी अब फिर से सिर उठाने लगा है। इसे केंद्र सरकार की असफलताओं से ही जोड़कर देखा जाना चाहिए क्योंकि केंद्र में जिस पार्टी की सरकार है, वह पार्टी पंजाब में सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल है। भाजपा चाहे कुछ भी कह ले, लेकिन देश के औद्योगिक राज्यों में आंदोलन खड़ा होना इसे महज संयोग कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। पहले गुजरात, फिर हरियाणा इसके बाद बेंगलुरु और अभी फिलहाल महाराष्ट्र, ये तमाम औद्योगिक क्षेत्र हैं, जहां आंदोलन हो रहे हैं। भाजपा की केंद्र सरकार इसे संभालने में भी असफल रही है। इस सरकार की सबसे अहम बात है कि जितने आरोप इस सरकार पर सांप्रदायिक होने के लगते रहे हैं, उसमें एक भी कोई बड़ी घटना इसके कार्यकाल में नहीं आई है।

अहम बात यह है कि भाजपा शासित राज्य सांप्रदायिक घटनाओं के मामले में अच्छा रिकॉर्ड रहा है। कहीं से ऐसी कोई खबर बीते कुछ सालों में नहीं है। चाहे फिर वह शिवराज सिंह का मध्यप्रदेश हो या फिर रमन सिंह का छत्तीसगढ़ या वसुंधरा राजे का राजस्थान। एक बात कह सकते हैं कि यह सरकार विवादों में भी रही। एक ओर कभी अल्पसंख्यक उत्पीड़न के लिए, तो कभी दलित उत्पीड़न के लिए। इस मामले में कई प्रतिष्ठा-प्राप्त लोगों ने अपने सम्मान भी लौटाए। इस मामले में लगता है थोड़ी राजनीति भी हुई और सरकार को बदनाम करने की कोशिश भी की गई, लेकिन इन विवादों से अपने को बचाने के लिए सरकार ने कोई उपाय भी नहीं किया उलट बहुसंख्यक धु्रवीकरण के सिद्धांत पर चलती रही।

कुल मिलाकर सरकार के कुछ अच्छे काम हुए हैं, जिसकी सार्वजनिक सराहना होनी चाहिए, लेकिन जो सरकार की गलती है, उस पर भी चर्चा खुलकर हो, हालांकि इस सरकार को अपना चमत्कार दिखाने के लिए थोड़ा और वक्त दिया जाना चाहिए। कम से कम इस सरकार में अभी तक भ्रष्टाचार के तो मामले नहीं हैं। यह प्रधानमंत्री की उपलब्धि के साथ ही साथ, सरकार की ताकत भी है। मोटे तौर पर कहें तो मोदी सरकार ढाई साल में ढाई घर ही चल पाई है, लेकिन पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की तुलना में पारदर्शी होना इसकी सबसे अहम उपलब्धि है।

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