20 Apr 2024, 01:40:15 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

एक बार जापान के एक राजा, एक ऐसे सुखी और संतुष्‍ट परिवार के मुखिया से मिलने जाते है, जिसके परिवार में एक हजार सदस्‍य थे। राजा ने सुख और संतुष्‍टी का रहस्‍य पूछा तो उन सौ वर्षीय वृद्ध महाशय ने एक ही शब्‍द को तीन बार दोहराया था, सहनशीलता, सहनशीलता, और सहनशीलता। 
 
 
इसी छोटे से प्रसंग को आधार बनाकर इस रचना का तानाबाना बुना गया है। वर्तमान में भारत में परिवार और कार्यालयों में अविश्‍वास तथा विखण्‍डन के वातावरण के चलते परिवार टूट रहे हैं और दफ्तरों में काम की गति दुर्गति को प्राप्‍त हो रही है, कर्मसंस्‍कृति नष्‍ट हो चली है। व्‍यक्तिगत अहंकार के चक्‍कर में हिजग्राही (बेनिफिशरी) परेशान हो रहे हैं। याद रखिए, परिवार नष्‍ट होंगे तो सबकुछ नष्‍ट हो जाने वाला है और सरकारी संस्‍थानों में असहिष्‍णुता और अहंकार का साम्राज्‍य रहा तो विकास तो धरा रह जाएगा और अधोगति को कोई नहीं रोक पाएगा। स्‍पष्‍ट संकेत मिलने लगे हैं, अब तो संभलना ही होगा।
 
 
 
इस प्रतिनिधि और प्रतीकत्‍मक कथा का नायक एक मेहनती, निष्‍ठावान और अपनी विधा में कुशल अधिकारी है। जिसको प्रचलित व्‍वस्‍थावश तीस चालीस लोगों के साथ मिलकर, एक कार्य को संपादिन करने का अधिकार दिया गया था। कार्य व्‍यवस्थित चल रहा था सभी लोगा अपना काम र्इमानदारी से कर रहे थे। उच्‍चाधिकारी भी संतुष्‍ट थे, परंतु न जाने क्‍यों वे स्‍वंय अपने आपने आपको सदैव किन्‍हीं अज्ञात षड्यंत्रों के कारण असुरक्षित महसूस करते रहते थे, लिहाजा सबकुछ ठीक होते हुए भी, सब कुछ गड़बड़ सा था। लिहाजा अधिकांश लोग अनमने से और अपमान महसूस करते हुए अपना काम निपटाने लगे थे। ऐसा लगता था कि स्थिति तनावपूर्ण है परंतु नियंत्रण में है।
 
 
 
किसी शुभचिंतक की सलाह पर, न चाहते हुए भी, वे एक ऐसे अनुभवी बुजुर्ग परंतु कम शिक्षित व्‍यक्ति से मिलने पहुंचे, जिनके परिवार में नौकरों-चाकरों सहित चार सौ लोग थे, सभी संतुष्‍ट और खुश भी थे। उस बुजुर्ग व्‍यक्ति ने उन्‍हें आदर सहित अपने पास बिठाया और नौकर को आवाज दी, रामलालजी। एक बीस बाइस साल का नौकर दौड़ा चला आया, उन्‍होंने उससे कहा बेटा, जलपान की व्‍यवस्‍था कीजिए, हां जरा जल्‍दी कीजिएगा। नौकर बोला, जी बाबूजी। नौकर को इतना सम्‍मान दिए जाने से उन अधिकारी महोदय को बहुत आश्‍चर्य हुआ।
 
 
 
 
 
खैर, बुजुर्ग व्‍यक्ति के कहने पर उन्‍होंने अपनी सारी कथा और व्‍यथा विस्‍तार से सुनाई। बुजुर्ग बोलें, माननीय! लेकिन जैसे ही उन्‍होंने माननीय शब्‍द बोला, अधिकारी ने टोकते हुए कहा कि मैं शिक्षा, दीक्षा, और पद की दृष्टि से भले ही भले ही आपसे बड़ा हूं , परंतु उम्र की दृष्टि से आप बड़े और मेरे लिए माननीय हैा वे बोले, बेटा गीता और श्रीरामचरितमानस में भगवार ने स्‍वयं अपने श्रीमुख से कहा है कि मैं सभी प्राइज़ के ह्रदय में समान रूप से विराजमान हूं।
 
 
 
 
बस, मैं आपके भीतर के परमात्‍मा को सम्‍मान के बहाने प्रणाम कर रहा था। इतने में रामलाल ने कहा बाबूजी शर्मासाहब का फोन है और वे पूछ रहे हैं कि आपको समय हो तो पांच सात मिनट आपसे बात करना चाहते हैं। दरअसल शर्माजी जिले के एक बहुत बड़े जवाबादार, लोकप्रिय और सफल अधिकारी थे। खैर, बाबूजी ने स्‍पीकर चालू कर दिया। उधर से आवाज आई, बाबूजी प्रणाम, मैंने आपकी सलाह का पालन किया और आज सिर्फ छह माह में ही मै एक सफल, नवाचारी और सह्रदय अधि‍कारी के रूप में अपने अधीनस्‍थों और आम जनता के बीच प्रसिद्ध हो चुका हूं। 
 
 
 
 
जिस जिले से जनता की जबरदस्‍त मांग पर मुझे स्‍थानान्‍तरित किया गया था, वहां के तमाम लोग अब मेरी पुन: पोस्टिंग के लिए सरकार से मांग कर रहे हैं।  यहां आते ही मैंने आपके कहे अनुसार, अपने सभी अधीनस्‍थों को साथी मानते हुए उनकी कमजोरियों को नजरअंदाज किया और उनकी रूचि तथा विशेषता का ध्‍यान रखते हुए उन्‍हें निष्‍पक्षता और पारदर्शिता के साथ परिणाममूलक काम करने की पूरी पूरी स्‍वतंत्रता दीफ मैंने उनसे स्‍पष्‍ट कह दिया था कि मैं उनकी रणनीति को बदल में हस्‍क्षेप नहीं करूंगा, असफलता से विचलित न हो, मैं आपके साथ हूं, जब चाहे रणनीति को बदल सकते हैं, मेरे समक्ष वे किसी अन्‍य अधिकारी की तार्किक सराहना और अपने प्रोजेक्‍ट के विषय में ही  बात करें, परंतु मैं किसी अन्‍य अधिकारी की शिकायत कदापि बर्दाश्‍त नहीं करूंगा। अपनी व्‍यक्तिगत या अन्‍य परेशानियों के लिए किसी भी समय बात कर सकते हैं। बाबूजी, मैंने तो कल्‍पना भी नहीं की थी कि इन छोटी-छोटी बातों से अधिकारियों की कार्यक्षमता और दक्षता बढ़ सकती है और मेरी सफलता का ग्राफ इतना ऊंचा चला जाएगा।
 
 
 
 
बाबूजी बोले, बेट यह तो तुम्‍हारे भीतर विराजमान प्रतिभा का कमाल है, फिलहाल मैं फोन रखता हूं, थोड़ी देर बाद फोन करूंगा, एक वीआईपी मेहमान आए हुए है। जी, बाबूजी प्रणाम।  बाबूजी ने बात शुरू की बोलें, बेटा तुम्‍हारी बात सुनने के बाद एक सलाह देना चाहता हूं कि जीवन में आशंकाओं से मुक्‍त हो जाओ ओर सहनशीलता को अपनाओ, अविश्‍वास के वातावरण केा प्रयासपूर्वक समापत करो, चुगलखोरों और चमचे किस्‍म के लोगों को अपने स्‍वास्‍थ्‍य और निष्‍पक्ष प्रशासन का सबसे बड़ा शत्रु मानकर, उनसे बचने की युक्ति का इस्‍तेमाल करो। हरेक का एक विशेष व्‍यक्तिव होता है, उस इंडिया को स्‍वीकार करो। शास्‍त्रों के अनुसार विद्या व्‍यक्ति को विनयशील और विवेकवान बनाती है, यह बात सदैव दिमाग में रखो।
 
 
 
बड़प्‍पन को अपनाओ हरेक व्‍यक्ति का आत्‍मसम्‍मान होता है, उसको चोट पहुंचाने का अर्थ है, अपने लिए अपमाजनक स्थिति को आगे होकर आमंत्रित करना। अपमान करते हैं तो वही कई गुना लौटकर आता है। किसी को बदनाम करते है तो वह भी ब्‍याज सहित लौटती है। एक बात और, जब कोई भी अधिकारी अपने बॉय के पास ज्‍यादा देर तक बैठता है ,तो  अक्‍सर ती बातें होती हैं, पहली, वह बॉय की अकारण प्रशंसा करता है, दूसरी बात, वह स्‍वयं की तारीफ करता है और थोड़ी देर बाद ही वह दूसरों की निंदा करने लगता है।
 
 
 
ये तीनों बातें बॉस की सोचने समझने की शक्ति को कुंद कर देती हैं और बॉस को उस व्‍यक्ति का गुलाम बना देती हैं, यानी बॉस की इंडिया खत्‍म हो जाती है और वातावरण में जहर फैल जाता है। शर्माजी का फोन मैंने जानबूझकर स्‍पीकर पर रखा था। जी बाबूजी, मैं समझ गया था। मुझे भी काफी कुछ समझ में आने लगा है। बेटा, साल छह महीनों में परिस्थितियां बदलेंगी, फिर आगे स्‍वत: ही मार्गप्रशस्‍त होने लगेगा। ईश्‍वर में विश्‍वास रखो। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
पता नहीं, उस अधिकारी का क्‍या हुआ परंतु सच तो यह है कि आशंका, अहंकार, सहनशीलता के अभाव, चुगलखोरी और चमचागिरी ने परिवारों का नाश कर दिया है और दफ्तरों में नकारात्‍मकता ने अपने पैर पसार लिए हैं।
 
 
 
                                                                                                                      डॉ मनोहर भंडारी
 
 
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