-वीना नागपाल
आजकल अधिकांश स्कूल निजी हाथों में चले गए हैं। पहले शासकीय स्कूल ही होते थे या फिर बड़ी-बड़ी संस्थाएं स्कूल खोलती और चलाती थीं। उदाहरणार्थ आर्य समाज व सनातन धर्म या इसी तरह की अन्य संस्थाएं। कभी-कभी बडे-बड़े सेठ व साहूकार भी धर्माथ भावना के कारण स्कूलों व महाविद्यालयों की स्थापना करते थे। वहां भी फीस की मारा-मारी नहीं होती थी और इस स्कूलों की स्थापना के पीछे कोई व्यापारिक व व्यवसायी मकसद नहीं होता था।
आज शिक्षा व्यापार बन गई है। भारी-भरकम फीस देने की क्षमता रखने वाले ही इन स्कूलों मं अपने लाडले व लाडलियों को पढ़ाते हैं। चूंकि उनकी यह संतान बहुत लाडली होती है इसलिए वह स्कूल का अनुशासन व नियम माने या माने उसकी मर्जी पर निर्भर करता है। उनके लिए सारी सुख-सुविधाएं जुटाने वाले और उनकी बेजा मांगों को भी पूरे करने वाले पेरेन्टस अपने इन बिगडैÞल बच्चों को सिर चढ़ा कर रखते हैं। यह लाडले घर में तो मनमर्जी कर तूफान मचाए रखते ही हैं पर जब यह स्कूल जाते हैं तो वहां भी इनकी उदंडता कुछ कम नहीं होती। यह वहां भी जाकर स्कूल का और कक्षा का अनुशासन भंग करते हैं। कई बार अति हो जाने पर यदि क्लास की अध्यापिका और अध्यापक इन्हें दंड देते हैं तो यह उन पर आरोप लगा कर अपने माता-पिता से शिकायत करते हैं। माता-पिता भी अपने लाडलों पर तुरंत विश्वास कर स्कूल के अधिकारियों व शिक्षक के विरुद्ध शिकायत करने पहुंचे जाते हैं। वह अपने बच्चों की बात पर इतना विश्वास करते हैं कि उससे पूरी तरह पूूछताछ ही नहीं करते। यदि वह पहले बच्चों से पक्की जांच-पड़ताल करें तो बच्चे सच बताने के लिउ मजबूर हो जाएंगे। पर, माता-पिता तो आंख मंूदकर अपने बच्चों की ही बात का यकीन करते हैं और सीधे स्कूल पहुंच जाते हैं-शिकायत करने।
आजकल के टीचर्स के सामने बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। स्कूल का प्रबंधन व अधिकारी चाहते हैं कि शिक्षक बच्चरें को अनुशासन में रखें। उन्हें नियम-कायदे सिखाएं। स्कूल का नाम व प्रसिद्धि इसी में है कि उनके स्कूल के बच्चे बहुत अनुशासित हैं तथा अध्ययन में पूरी लगन से ध्यान देते हैं। जब स्कूल का यह नाक बाहर जाएगा तभी जो उनके यहां के स्कूल में प्रवेश् लेने की मारा-मारी होगी और पेरेन्टस भी अपने फ्रेंड सर्कल में इस बात की गर्व से घोषणा करेगें कि उनका फलां स्कूल में पढ़ता है। दूसरी ओर शिक्षकों से यह भी आशा व अपेक्षा की जाती है कि वह बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए किसी प्रकार का दंड न दें या कड़ाई से पेश नहीं आएं नहीं तो बच्चे उनकी शिकायत कर देंगे जिस पर माता-पिता आंख मूंद कर यकीन कर उस शिक्षक के व्यवहार के विरुद्ध स्कूल अधिकारियों के पास चले जाएंगे और बेचारे उस शिक्षक व शिक्षिका को अपनी नौकरी से हाथ धोने पड़ेगा।
आज के इस माहौल में सबसे अधिक शिक्षा के क्षेत्र में बहुत विरोधाभास मौजू है। प्राथामिक स्तर पर जो शिक्षा भविष्य के श्रेष्ठ गुणों व योग्यताओं का आधार बनती है उसी का व्यापारीकरण हो गया है। शिक्षक अपने व्यवहार में बहुत डरा व सहमा हुआ है कि उससे कुछ ऐसा न हो जाए कि स्कूल के व्यापारियों को कोई उलझन हो जाएं। उनके व्यापार में कोई बाधा उत्पन्न हो जाए। एक शिक्षक यदि इस मानसिकता को लेकर शिक्षा देगा तो कल्पना की जा सकती है वह अपने शिष्यों को कैसी शिक्षा और व्यवहार का प्रशिक्षण देगा।