-वीना नागपाल
बहुत कष्ट होता है और बेहद बुरा भी लगता है जब सरेआम महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार होता है। उनके साथ अशिष्टता की जाती है। उस समय अनेक प्रश्न उठने लगते हैं कि ऐसा क्यों होता है? क्या कारण है कि बिना किसी संकोच व झिझक के इस तरह का व्यवहार करने का दु:साहस आजकल इतना बढ़ गया है।
पता नहीं यह बात कितनी सही है पर, व्यवहार का उत्तर समझ में आता है कि प्राय: बोलचाल की भाषा में जब महिलाओं के साथ व्यवहार किया जाता है तो उस भाषा में शिष्टता का सर्वथा अभाव होता है। प्राय: घर परिवारों में लड़कियों के साथ जो व्यवहार किया जाता है उसमें भाषा की बहुत बड़ी भूमिका है। उनके साथ की जाने वाली बातचीत तथा वार्तालाप में उनके प्रति आदर व सम्मान का ही बोध नहीं होता। भाषा न केवल सख्त और तल्ख होती है बल्कि उसमें यह भी ध्वनित होता है कि जैसे उन्हें निरंतर दुत्कारा और फटकारा जा रहा हो। यही भाषा घर से निकल कर जब बाहर पहुंचती है तो उसमें आदर व सम्मान की बात तो छोड़िए, सहजता व स्वभाविकता तक नहीं होती। एक अजीब हिकारत भरी होती है और उन्हें दोयम दर्जे का समझकर महिलाओं के साथ भाषा में प्रयोग किए गए शब्दों में अशिष्टता भरी होती है।
इस बात को उठाया जाना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि आजकल सार्वजनिक जीवन में भी भाषा की शिष्टता का कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा। संसद में एक सांसद ने विपक्षी दल की सक्षम और हौसले वाली महिला नेता के बारे में इस तरह खुलकर जो कहा और जिस अपमानजनक शब्द का प्रयोग किया उससे हम सबके सिर शर्म से झुक गए हैं। एक महिला और वह भी राजनीति के क्षेत्र की इतनी जानी-पहचानी और सबल नेता के लिए जिस हिमाकत से उस शब्द का प्रयोग किया गया उसमें केवल महिलाओं का ही नहीं बल्कि पुरुषों का भी अपमान हुआ है। महिला सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले और सामाजिक व राजनीतिक जीवन में प्रतिष्ठित पदों पर पहुंचने वाले भी महिलाओं के प्रति कैसा नजरिया रखते हैं यह बहुत चिंता और गम मनाने का विषय है। यहां उस शब्द को दोहराएं तो इसमें भी बहुत लज्जा का अनुभव होगा। यदि पुरुषवादी सोच व मानसिकता नहीं बदली है तब महिला सशक्तिकरण की बात खोखली ही है।
महिलाओं के प्रति व्यवहार तथा उनके साथ बोली जाने वाली भाषा में सुधार आना बहुत आवश्यक है। यह बात विचलित करती है कि जब एक सार्वजनिक जीवन जीने वाला नेता किसी महिला का भाषा द्वारा इतना अपमान कर सकता है तो साधारण महिलाओं को पुरुषों द्वारा उनके लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा से कितना अपमान सहना पड़ता होगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। सुना है कि उन नेत्री के समर्थकों ने बदले में अपशब्द कहने वाले नेता की मां, पत्नी और बेटी के प्रति बहुत निकृष्ट शब्द उच्चारे। उन नेता और नेत्रीजी के समर्थकों की भर्त्सना की जाना चाहिए। किसी को भी यह छूट नहीं है कि महिलाओं का भाषा द्वारा अपमान करे। घर-परिवारों में महिलाओं के प्रति प्रयोग की जाने वाली भाषा में यदि उनके प्रति सम्मान व आदर के शब्द प्रयुक्त किए जाएंगे तो बाहर भी उन्हें यही सम्मान मिलेगा।
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