-वीना नागपाल
जब-जब बिहार की इंटरमीडिएट टॉपर छात्रा की कही हुई बात याद आती है तो कुछ अस्त-व्यस्तता होने लगती है। यहां हम इस बात की चर्चा नहीं कर रहे कि वह कैसे टॉपर बनी और इससे शिक्षा के स्तर की क्या सत्यता पता चली आदि-आदि कई बातें ऐसी हैं जिन पर जो बवाल मच रहा है उसे हम सब जानते हैं। सही बात तो यह है कि शिक्षा के स्तर को लेकर बहुत चिंतक परेशान हो रहे हैं। बातें कर रहे हैं व अपने विचार भी प्रकट कर रहे हैं पर, किसी ने भी इन बातों को गंभीरता से लेने का सोचा तक नहीं और आज जब उसका परिणाम एकदम सामने आया है तो उस पर इतना हो हल्ला मच रहा है।
हम यहां उस टॉपर का नाम भी नहीं लेंगे, क्योंकि उसके स्थान पर कोई और छात्रा होती और उसे टॉपर घोषित कर दिया जाता तो क्या अंतर पड़ने वाला था। दोनों का स्तर समान ही होता और वह भी वही उत्तर देती जो तथाकथित टॉपर छात्रा ने दिया। हमें उसके पॉलिटिकल साइंस विषय को पॉलिटिकल साइंस कहने पर भी कुछ नहीं कहना पर, इस बात पर जरूर कहना है कि इस प्रश्न को पूछने पर कि इस विषय में क्या-क्या पढ़ाया जाता है तो उस छात्रा का उत्तर था कि इसमें खाना बनाना सिखाया जाता है। ‘‘स्कूल की छात्राएं अभी तक खाना बनाने की बात तक ही सीमित हैं और इसी की सोच में जकड़ी हुई हैं। उनके लिए इससे इतर न कोई विषय है और न ही कोई विचार है। सालभर विषय को पढ़ने के बाद भी वह छात्रा यह नहीं समझ पाई कि वह उस विषय में क्या-क्या पढ़ रही है? वह केवल इस दायरे में ही घिरी रही कि उसे तो केवल खाना बनाना है और इसे बनाना ही सीखना है। यहां किस महिला मुक्ति और सशक्तिकरण की बात की जाए जिसमें स्कूल जाकर शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियां केवल चौके-चूल्हे की बात तक ही सीमित हैं। अभी तक उनके मन में यह बात गहरी पैठी हुई है कि उन्हें तो चौका-चूल्हा संभालना है और उनका क्षेत्र खाना बनाने तक ही बंधा हुआ है। उस छात्रा का यह उत्तर केवल शिक्षा के स्तर की बात नहीं करता, बल्कि इस बात की ओर भी संकेत करता है कि इतने सारे महिला हितैषी अभियानों के बावजूद भी हम लड़कियों के दिमाग से यह बात नहीं निकाल पाए कि उनका काम खाना बनाना और खाना बनाना सीखना है।
पॉलिटिक्स साइंस (जिसे वह छात्रा पोडिकल साइंस कह रही थी) शायद उसने इसलिए लिया था कि वह उस एक बेहतर खाना बनाने वाली महिला के रूप में शिक्षित कर देगी और उस रूप में ही उसे ढाल देगी। शायद उस छात्रा ने पॉलिटिक्ल साइंस विषय ही इसलिए चुना होगा कि वह एक अच्छी खाना बनाने वाली गृहिणी भविष्य में बन सके। उसके लिए यही एक मात्र लक्ष्य रहा होगा। इसके न तो पीछे और न ही आगे उसे और उसके परिवार को सोचने की कोई जरूरत होगी। उस टॉपर छात्रा का चित्र (जिसे ‘‘फोटू’’ भी कहा जा सकता है) सभी समाचार पत्रों में उसके द्वारा दिए गए इस तरह के उत्तर के बाद छपा था। उसमें उसके मध्यम वर्गीय परिवार वाले उसे मिठाई खिला रहे थे। उनका सपना भी होगा कि इस तरह टॉपर होने के बाद उसे एक अच्छा घर-वर की शिक्षा लेकर वह भली -प्रकार चौका चूल्हा तो संभाल ही लेगी, इतना भर ही तो चाहिए।
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