नई दिल्ली। मौजूदा दौर में नारी सशक्तिकरण पर चौतरफा जोर दिया जा रहा है। कहीं सामाजिक चेतना के जरिए तो कहीं सख्त कानून के जरिए। परंतु संविधान निर्माता डाक्टर भीमराव अंबेडकर ने वर्षों पहले दलितों के उत्थान के साथ ही महिलाओं के सशक्तिकरण का मूलमंत्र दे दिया था और उनका यह मूलमंत्र ‘शिक्षा’ था। बाबा साहेब ने दशकों पहले नारी सशक्तिकरण के लिए महिलाओं से ‘जल्द शादी नहीं करने और पतियों की गुलामी नहीं करने ’’का आह्वान किया था।
महिला सशक्तिकरण को लेकर अंबेडकर के चिंतन की बानगी साल 1942 में शोषित वर्ग की महिलाओं के एक सम्मेलन में देखने को मिली थी जब उन्होंने कहा था, ‘किसी समुदाय की प्रगति महिलाओं की प्रगति से आंकी जाती है।’ जानमाने दलित चिंतक और लेखक चंद्रभान प्रसाद का कहना है, डॉक्टर अंबेडकर के 17वें ग्रंथ के पहले हिस्से में इसका उल्लेख है कि 20 जुलाई, 1942 को नागपुर में बाबासाहेब ने ‘अखिल भारतीय शोषित वर्ग महिला सम्मेलन’ का आयोजन किया था ।
इस सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि किसी भी समुदाय की प्रगति महिलाओं की प्रगति से आंकी जाती है। प्रसाद ने कहा, उसी सम्मेलन में डॉक्टर अंबेडकर ने महिलाओं का आह्वान किया था कि वे जल्द शादी नहीं करें और पति की गुलामी नहीं करें। बाबासाहेब ने ये बातें उस वक्त कही थीं जब पुरूषवाद बहुत हावी था।
‘दलित इंडियन चैम्बर्स ऑफ कामॅर्स एंड इंडस्ट्री’ (डिक्की) की महिला इकाई की अध्यक्ष अनीता नायक कहती हैं, अंबेडकर का सभी शोषित वर्गों के लिए आर्थिक दर्शन बेहद अहम है। उनका आर्थिक दर्शन बहुत महत्वपूर्ण है। हमारा प्रयास है कि महिलाएं शिक्षा के साथ रोजगार एवं व्यवसाय के साथ भी बड़ी संख्या में जुड़ें।
गैर सरकारी संस्था ‘बहुजन समाज परिसंघ’ के प्रमुख प्रबुद्ध कुमार ओमी का कहना है, बाबा साहब ने सिर्फ दलितों के उत्थान की बात नहीं की बल्कि समाज के सभी शोषित वर्गों और खासकर महिलाओं के सशक्तिकरण पर जोर दिया। उनकी ओर से जगाई गई चेतना का ही परिणाम था कि आजाद भारत में दलित वर्ग से कई महिलाओं ने अलग अलग क्षेत्रों में बड़े मुकाम हासिल किए।
ओमी कहते हैं, डॉक्टर अंबेडकर का महिला सशक्तिकरण को लेकर मूलमंत्र शिक्षा था। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को समाज के विकास के लिए बहुत आवश्यक बताया था। मध्य प्रदेश के महू में 14 अप्रैल, 1891 को पैदा हुए अंबेडकर ने मुंबई विश्वविद्यालय, कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल आॅफ इक्नॉमिक्स जैसे देश-दुनिया के प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा हासिल की।
आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाते हुए अंबेडकर ने दलितों और समाज के शोषित वर्गों के लिए हक की आवाज बुलंद की। आजाद भारत की सरकार में पहले कानून मंत्री बने बाबा साहेब छह दिसंबर, 1956 को दुनिया को अलविदा कह गए। चंद्रभान प्रसाद का कहना है कि अंबेडकर के व्यक्तित्व को सिर्फ दलित चेतना और दलित उत्थान के ईदगिर्द नहीं रखा जा सकता।
उन्होंने कहा, समाज के एक विशेष वर्ग के बुद्धिजीवियों ने जानबूझकर अंबेडकर को सिर्फ दलितों से जोड़ने की कोशिश की है। असल बात है कि अंबेडकर का व्यक्तित्व बहुत व्यापक है। वह समाज के सभी शोषित लोगों की आवाज थे। समाज के सभी तबकों को यह स्वीकार करना होगा कि बाबासाहेब पूरे राष्ट्र के नेता थे।