18 Apr 2024, 22:25:19 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

सफलता का श्रेय किसे मिले, इस पर एक दिन विवाद उठ खड़ा हुआ। विवाद करने वाले तीन जन थे। उनके नाम थे अभिलाषा, शक्ति और मेधावी। नाम के अनुरूप ही तीनों इच्छा, शक्ति और बुद्धि से संपन्न थे। ये तीनों ही खुद को अधिक महत्वपूर्ण बता रहे थे। अंत में तय हुआ कि विवेक को पंच बनाकर विवाद का फैसला कराया जाए। विवेक तीनों को साथ लेकर चल पड़ा। उसने लोहे की टेढ़ी कील ली और हथौड़ा लिया। चलते-चलते उन्होंने एक सुंदर बालक को देखा। विवेक ने बालक से कहा, बेटा, इस टेढ़ी कील को अगर तुम हथौड़े से ठोक कर सीधी कर दो, तो तुम्हें भर पेट मिठाई खिलाऊंगा। बालक की आंखें चमक उठीं। वह बड़ी आशा और उत्साह से कील सीधी करने में जुट गया। पर कील को सीधा कर सकना तो दूर, उससे हथौड़ा तक नहीं उठा। उसके हाथों में भारी औजार उठाने लायक शक्ति नहीं थी।

बहुत कोशिश करने पर भी सफलता न मिली, तो वह खिन्न होकर चला गया। चारों फिर आगे बढ़े। थोड़ी दूर जाने पर उन्हें एक मजदूर दिखाई पड़ा। वह खर्राटे लेता हुआ सो रहा था। विवेक ने उसे झकझोर कर जगाया और कहा, यदि इस कील को सीधा कर दोगे, तो मैं तुम्हें मुंहमांगा पारिश्रमिक दूंगा। उनींदी आंखों से श्रमिक ने कुछ प्रयत्न भी किया, पर वह नींद की खुमारी में बना रहा। उसने हथौड़ा एक ओर रख दिया और सो गया। निष्कर्ष यह निकला कि केवल ‘शक्ति’ ही काफी नहीं है। सामर्थ रखते हुए भी अभिलाषा न होने से श्रमिक जब कील को सीधा न कर सका, तो और कहा भी क्या जा सकता था? विवेक ने कहा, जो बात हम जानना चाहते थे, वह मालूम पड़ गई। अभिलाषा, शक्ति और बुद्धि का सम्मिलित रूप ही सफलता का श्रेय प्राप्त कर सकता है। एकाकी रूप में ये तीनों अधूरे और अपूर्ण हैं।

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