आज से दस साल पहले किसी को नहीं पता था कि एक ऐसा फोन आएगा जिससे लोगों की क्लास का पता चल सके। आईफोन ने लोगों की जिंदगी बदल दी। स्टीव जॉब्स के एक आईडिया से लोगों को महंगे फोन का चस्का लगा और लोगों के हाथों में आईफोन आ गया। लेकिन क्या आपको पता है आईफोन बनाने के लिए एपल को क्या-क्या करना पड़ा। ये सारे खुलासे हुए ब्रायन मर्चेंट की लिखी एक किताब में जिसका नाम है ‘द वन डिवाइस: द सीक्रेट हिस्ट्री आॅफ द आईफोन’। दुनिया ने पहली बार टच से काम करने वाला कोई डिवाइस देखा था जो अच्छी तरह से इंटीग्रेटेड भी था। आईफोन को किस कदर गोपनीयता के साथ तैयार किया गया था, यह एक दिलचस्प कहानी है।
स्टीव जॉब्स ने स्कॉट फोर्स्टाल से एक टीम बनाने को कहा, जिसे आईफोन बनाने का काम सौंपा जाना था। लेकिन एक शर्त थी कि टीम में से कोई भी व्यक्ति एपल से बाहर का नहीं लिया जाएगा। वह इंजीनियरों और टीम के संभावित सदस्यों को नहीं बता सकते थे कि वे लोग किस चीज पर काम करने वाले हैं। उन्हें बस इतना बताया गया था कि यह एक ‘अद्भुुत नया प्रॉडक्ट’ होगा। अगर इसके लिए तैयार हैं, तभी टीम का हिस्सा बनने के बारे में सोचें. यही नहीं, आईफोन बनाने के लिए कई लोगों की शादीशुदा जिंदगी बर्बाद हो गई। लेकिन स्टीव जॉब्स ने आईफोन के लिए कोई कॉम्प्रोमाइज नहीं किया।
एपल आईफोन को तैयार करने के इस काम को सीक्रेट तौर पर ‘प्रोजेक्ट पर्पल’ का नाम दिया गया। इससे जुड़ी टीम ने अमेरिकी शहर क्यूपरटीनो की एक इमारत को ले लिया और उसे लॉक कर दिया। पहला फ्लोर बैज रीडर और कैमरों से भरा था। किसी को नहीं पता था कि ऊपर क्या काम चल रहा है। लोग वहीं रहते थे, अंदर ही काम करते थे। और तो और ओवरवर्क से लोगों की हालत तक खराब हो गई थी। लेकिन स्टीव जॉब्स चाहते थे कि किसी भी हालत में इसकी गोपनीयता बनाए रखी जाए।
एक मजेदार बात यह थी कि एपल ने अलग-अलग समूहों के लोगों को अलग अलग कोड नाम दिए थे। इससे यह सुनिश्चित किया गया था कि लोगों को यह ना पता चले कि दूसरा व्यक्ति भी उसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। एपल ने इस प्रोजेक्ट के लिए हजार इंजीनियरों की टीम जुटाई थी। इन्हें तीन साल के मिशन से जोड़ा गया था, जिसका नाम ‘प्रोजेक्ट पर्पल 2’ रखा गया था. इन्हीं के बदौलत 29 जून 2007 को पहला आईफोन दुनिया में लांच किया गया। टीम ने ऐसी डिजाइन बनाई जो एक दशक बाद भी लगभग वैसी ही है।