नई दिल्ली। 13 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल नेटवर्किंग साइटों के इस्तेमाल के खिलाफ कड़े कानूनों के बावजूद अभिभावकों की निगरानी के अभाव और तकनीक की उपलब्धता के कारण देश में सात से 13 साल तक के 76 प्रतिशत बच्चे रोजाना यूट्यूब पर वीडियो देखते हैं।
यह खुलासा एसोचैम सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन के एक सर्वे में हुआ है। सर्वे देश के 11 शहरों में 4750 परिवारों बीच किया गया है। इसके मुताबिक निगरानी के अभाव और तकनीक तक आसान पहुंच होने के कारण ऐसा हो रहा है।
एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने कहा- ‘सर्वे के आंकड़े दुखद और चिंताजनक हैं। यूट्यूब पर अकाउंट खोलने के लिए 18 वर्ष न्यूनतम आयु निर्धारित है, लेकिन परिजनों की इजाजत से 5 वर्ष का बच्चा भी इसका इस्तेमाल कर सकता है।
इन पर 7 से 13 वर्ष के बच्चों की सक्रियता बढ़ती जा रही है और वे बिना परिजनों की इजाजत या जानकारी के भी इनका इस्तेमाल करने लगे हैं। यूट्यूब दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली वेबसाइट है।
इससे बच्चों में इलेक्ट्रानिक उपकरणों के माध्यम से आनलाइन संदेश भेजकर लोगों को डराने-धमकाने (साइबर बुलिइंग) के साथ ही ऑनलाइन अश्लील वीडियो देखने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 13 साल तक के करीब 76 प्रतिशत बच्चे, 11 साल तक के 69 प्रतिशत, 10 साल तक के 65 प्रतिशत बच्चे यूट्यूब पर रोजाना विजिट करते हैं। वहीं, आठ से नौ साल के 40 से 50 प्रतिशत बच्चे अन्य सोशल नेटवर्किंग साइटों पर सक्रिय हैं।